कविता

आरोहण कर

बाह्य दुनिया के छल मायावी प्रपंचों से निकल,
सुन जरा थोड़ा भीतर भी मनन करता जा,
सद्गुरु के अनुपम अतुलनीय मार्गदर्शन से,
मद्धिम-मद्धिम रोशनी प्रज्वलित करता जा ।

अपनी इच्छाओं को ज्ञान के चक्षुओं से,
अवलोकन कर पुनः कदम बढ़ाता जा,
विशाल, भव्य, दिव्य “आनंद” से भरी,
आंतरिक दुनिया का चिंतन स्मरण करता जा ।

जिज्ञासाओं को अनंत के गर्भ गृह से,
सत् चित् आनंद प्राप्ति की तरफ बढ़ाता जा,
जन्म लेने के मर्म को समझ अति,
विषय आसक्ति त्याग लक्ष्य को आरोहण करता जा ।

ब्रह्माण्ड की असीम अद्भुत शक्तियों के,
सिंधु से आत्म मंथन कर अमृत प्राप्त करता जा,
इंद्रियों पर संयम रखकर हौले-हौले,
चित्ति शक्ति को संयम लग्न से जगाता जा ।

अवरोध को खत्म कर राही आरोहण कर,
आत्म आनंद के ध्वज को फहराता जा,
जीवन उद्देश्य के प्रयोजन को सार्थक कर,
प्रेम संगीत को संसार में चहूंदिशि बहाता जा ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु