कविता

भोले मानस

भोले मानस ही जीवन में अक्सर छले जाते हैं,
फिर भी ईश्वर की कृपा से सदा हंसते मुस्काते हैं,
वे धुन सदैव परहित प्रेम की “आनंद” गुनगुनाते हैं,
दुष्टों की धृष्टता से डरकर वे कभी नहीं घबराते हैं ।

संस्कारों को संभालते वे सजाकर आगे बढ़ाते हैं,
ईश्वर पर दृढ़ भरोसा रखकर, अपना दर्द छुपाते हैं,
सत्कर्म अपना शांति से बस चुपचाप करते जाते हैं,
दुनियादारी की परवाह नहीं, अनवरत चलते जाते हैं ।

हर किरदार में परमात्मा को ही सर्वप्रथम ढूंढते हैं,
लाखों ठोकरें खाकर भी सत्य की राह न छोड़ते हैं,
गजब के आत्मविश्वासी उनमें अद्भुत चमक होती है,
उनकी दुआएं और प्रार्थनाएं प्रथम क़बूल होती है ।

मायावी प्रपंच उनको जरा भी समझ न आता है,
जीवन का रथ धीरे-धीरे यूं चलता चला जाता है,
छल, झूठ, फरेब, अभिमान उन्हें रास नहीं आता है,
सच्चे साथी कहलो जीवन अंत तक साथ निभाता हैं ।

भोले जन को जो छले सुख शांति कभी न पाता है,
होशियारी में खुद गड्ढा खोद उसी में गिर जाता है,
बुरे कर्मों का नतीज़ा जीवन में बहुत बुरा ही होता है,
चाटुकारिता नहीं चलती, वहां देख रहा ख़ुदा होता है ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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