वचन
वचन
“भाई साहब, रश्मि आपके घर की बहू बनेगी, ये तो रश्मि की खुशकिस्मती और हमारे लिए सौभाग्य की बात है।”
“भाई साहब, रश्मि को हम अपने घर की बहू नहीं, बेटी के रूप में लेकर जाएँगे।”
“ये तो आपका बड़प्पन है भाई साहब। रश्मि हमारी इकलौती बेटी है। हम उसकी शादी में कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगे। फिर भी आपकी कोई विशेष इच्छा हो तो…”
“हाँ… है न। हमें आपसे एक वचन चाहिए।”
“वचन… ? कैसा वचन ?”
“आप हमें वचन दीजिए कि रमेश को आप दोनों अपना दामाद नहीं, बेटा मानेंगे और 3-4 साल बाद रिटायरमेंट के बाद हम सभी एक ही कॉलोनी में आसपास रहेंगे जिससे कि रश्मि बिटिया आपकी तरफ से निश्चिंत होकर रह सके और अपनी नौकरी के साथ ही साथ घरेलू जिम्मेदारियो को भी अच्छे से निभा सके। यही नही, बुधापे में हम लोग आपस में एक-दूसरे की अच्छे से देखभाल भी कर सकेंगे।”
मुस्कुराते हुए दोनों भावी समधी एक दूसरे से लिपट गये।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़