कविता

रफ्तार

हां थे बहुत लोग उसके बनकर
या कहें सब थे गिरफ्तार,
रफ्तार का था शौकीन नाम था रफ्तार,
जिस अंदाज में आता था,
उसी अंदाज में जाता था,
कुछ लोग उन्हें देखकर ताली बजाते थे,
कुछ लोग उन्हें देखकर गाली सुनाते थे,
उनका अलग ही धुन था,
जल्दबाजी उनका अपना गुन था,
उसी रफ्तार ने उसे बुला लिया,
मौत ने एक दिन नींद भर सुला दिया,
जिस रफ्तार से आया था,
उसी रफ्तार से चला गया,
एक जिंदगी तेजी के द्वारा छला गया,
वो नादान था,
दुनियादारी से अनजान था,
तभी तो उनका
जीवन जीने का तरीका रहा धांसू,
ताउम्र रहेंगे परिजनों की आंखों में आंसू।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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