कड़वा यथार्थ
ढूँढ रहा हैं मासूम नवजात,
माता के आँचल की छाँव,
पिता की छत्रछाया,अरु,
चट्टान सी अटल ठाँव।।
हद से पार प्रेम दीवानगी,
दिखावटी वासना लिपटी,
भुलाये पलभर में रिश्तें,
वात्सल्य से था जिसे सींचा।।
मात पिता की स्नेहिल छाया,
बोल मीठे चाहे मुरझाती काया,
कृतघ्न न बनो कभी भूलकर भी,
लुटाई हैं भर भर ममता, माया।।
वृद्धाश्रम में मात पिता की,
अंखियों से झर झर मोती झरे,
बून्द बून्द छलके अमृत धारा,
दीवारों से टकराये नेह लहरें।।