गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दिया प्यार से जाता जो तुम वह आख़त क्या जानो।
देते जो पका लज़ीज़ उनकी मेहनत क्या जानो।।

रोता जो मन ही मन में सह जाता दुख वही सभी।
ठूँठ खड़ा ही जो रहता है वही अपत क्या जानो।।

जहाँ शांति रहती रहे सदैव हो क्लेश न कभी भी।
कितनी होती रहती उस घर की बरकत क्या जानो।।

जिस देश के हज़ार शत्रु हैं रक्षा कर लो उसकी।
जाये जीत हर युद्ध वह उसकी किस्मत क्या जानो।।

वार करते हैं दुश्मन बाज़ कभी आते ही नहीं।
करते हैं हमको वे कितना ही आहत क्या जानो।।

मासूम जनों को मारा शैतानो सोचा ही कब।
क्रूर, सुहागनों के सिंदूर की कीमत क्या जानो।।

युद्ध में मरना सबको जान बचाकर कहाँ भागो।
है तुम्हारा भी आया अंब तुम यह बखत क्या जानो।।

— रवि रश्मि अनुभूति’

Leave a Reply