करूणामई मॉं प्रकृति
पक्षियों का गूंजें मीठा शोर,
हरियाली छाई हो चारों ओर,
झूमें वन उपवन लताएँ सारी,
महके फूलों की सुंदर क्यारी ।
करुणामई मॉं प्रकृति मुस्काएँ
अपना दायित्व चलो निभाएँ ,
पर्यावरण प्रदूषण को रोके,
जो करें गलती उसको टोकें ।
फैलाएं हरित क्रांति सर्वस्व,
समझें शुद्ध पर्यावरण महत्व,
खुद भी संरक्षण में सहयोग करें,
प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करें ।
आ गया देखो फिर कोरोना,
मुश्किल हुआ है अब जीना,
गंभीर रोगों का फैला आतंक,
चलो मिलकर मिटाएँ ये कलंक ।
शुद्ध जलवायु है अति आवश्यक,
क्यों बन रहे हैं हम प्रकृति भक्षक,
पेड़ों को कटने से चलो बचाएँ,
जनजीवन को खुशहाल बनाएँ।
स्वच्छ हो जल व स्वस्थ हो जीवन,
बंद करें प्राकृतिक संपदा का दोहन,
प्रवाहित करती प्रकृति पंच प्राण,
“आनंद” से भरपूर हो सारा जहान ।
— मोनिका डागा “आनंद”