गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तुम ग़ैर के होकर मेरे हो दिल को ये सहना है मुश्किल
ये राज हमें मालूम है पर होंठों से कहना है मुश्किल।

मालूम अगर ये होता मुझसे पहले आबाद है तू
तेरी राहों में ना आते अब वापस जाना है मुश्किल।

जिसको कहते थे हम अपना अब बेगाना सा लगता है
ख़ामोश ही रहने दो मुझको ये दर्द बताना है मुश्किल ।

तेरी कोई खता नहीं सब दोष है मेरी किस्मत का
तुम्हें बांट नहीं सकती थी मैं पर अब अपनाना है मुश्किल ।

ज़ख्म हरा है अभी मगर कुछ दिन में भर जाएगा
वक्त लगेगा पर कुछ दिन दिल को समझना है मुश्किल।

तू शाद रहे आबाद रहे कोई ग़म तुमको न छू पाए
हम ग़म के भंवर में डूब गए बाहर आन है मुश्किल।

कोई गिला न सिकवा है जानिब अपनी अपनी किस्मत है
मुझको तो समझ सब आता है दिल को समझना है मुश्किल।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

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