गीत/नवगीत

विश्व पर्यावरण दिवस – २०२५

आया यह कैसा प्रगति का दौर
हर तरफ है बस शोर ही शोर
बम -बंदूकों की गड़गड़ाहट से
छाया जगत में अंधियारा घनघोर
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

सबमें है नेतृत्व करने की चाहत
चाहे हो जाए जनता की फजीहत
दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर
खुद को साबित कर रहे सिरमौर
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

असुरक्षा की भावना, से सब ग्रस्त
बढ़ती जनसंख्या से धरा है त्रस्त
पाश्चात्य की अंधी दौड़ में
संस्कारों से हम रहे मुख मोड़
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

कैसी यह आधुनिक जीवन-शैली
जिसकी देखो, तबियत बिगड़ैली
वातानुकूलित कक्षों में रहकर
पता न चलता,कब हो गई भोर
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

सुख-सुविधाओं की लेकर आड़
प्रकृति से हम कर रहे खिलवाड़
तमाम वातावरण कर रहे दूषित
आरोप दूजों के सर पर रहे फोड़
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

अपनी नाकामियां देखना न चाहें
हरदम कमजोर को आंखें दिखाएं
सात्विक विचारों को दे तिलांजलि
दम्भ की ओर दिया मन मोड़
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

नदियां,सागर,कूप कर रहे प्रदूषित
वायु प्रदूषण से, प्राण हुए व्यथित
प्रकृति भी लगता है रुष्ठ हो गयी
मौसम ले रहा है नये-नये मोड़
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

विश्व पर्यावरण दिन हर वर्ष मनाते
रस्म अदायगी कर खुश हो जाते
समुचित विकल्पों के अभाव में
प्लास्टिक का बढ़ता जा रहा जोर
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

आया यह कैसा प्रगति का दौर
हर तरफ है बस शोर ही शोर
बम-बंदूकों की गड़गड़ाहट से
छाया जगत में अंधियारा घनघोर
आया यह कैसा प्रगति का दौर।।

— नवल अग्रवाल

*नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई

Leave a Reply