कहानी

आदित्य ने देखा कि आशिमा अपना स्कार्फ भूल गई है।

जून की तपती दोपहर, शादी के सातवें दिन ही आदित्य को पुणे बी.एड ट्रेनिंग के लिए निकलना पड़ा। नए शहर की भीड़ में, दिल में एक अजीब-सी खाली जगह थी—जैसे सब कुछ होते हुए भी कुछ अधूरा रह गया हो। कॉलेज के पहले दिन ही सामने बैठी एक लड़की, उसकी मुस्कान और आंखों की चमक, बार-बार ध्यान खींच रही थी। उसका नाम था आशिमा—हर बात में एक ताजगी, हर मुस्कान में एक अनकहा जादू।
छुट्टी के बाद, जब सब बाहर जा रहे थे, आदित्य ने देखा कि आशिमा अपना स्कार्फ भूल गई है। उसने हिम्मत जुटाकर स्कार्फ लौटाया—”ये आपका है।” आशिमा ने शरारत से पूछा, “पक्का मेरा ही है?” आदित्य मुस्कुराया, “आपके हाथ में था, और मैं देख रहा था।” उस पल दोनों के बीच एक नर्म-सी डोर बंध गई।
अब कॉलेज की हर सुबह, लाइब्रेरी की खामोशी, कैंटीन की हलचल—हर जगह आदित्य को आशिमा की मौजूदगी महसूस होने लगी। हर मुलाकात, हर बातचीत, दोनों के दिलों को करीब लाती रही। लेकिन आदित्य के दिल में एक कसक थी—वो शादीशुदा था। घर पर उसकी पत्नी अन्वी थी, जिसकी मासूम उम्मीदें और सपनों की झलक उसकी यादों में बसी थी।
आदित्य की ज़िंदगी दो हिस्सों में बंट गई थी—एक तरफ़ घर की जिम्मेदारियाँ और अन्वी की यादें, दूसरी तरफ़ कॉलेज की रंगीन दुनिया और आशिमा की मोहब्बत। हर शाम हॉस्टल के कमरे में अकेले बैठकर वो खुद से सवाल करता—क्या ये सिर्फ़ तन्हाई का असर है, या दिल की सच्ची आवाज़?
एक दिन कॉलेज टूर पर असिरगढ़ किले की पहाड़ी पर, जब सब दोस्त हँसी-मज़ाक में मशगूल थे, आदित्य और आशिमा एक-दूसरे की खामोशी में सुकून ढूंढ रहे थे। उस ऊँचाई पर, हवा में तैरती उम्मीदों के बीच, दोनों की आंखों में वो अनकही दास्तां थी,जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता था।
फिर एक दिन, आदित्य को एक खत मिला—आशिमा के दिल का इज़हार। हर लफ्ज़ में उसकी मोहब्बत की शिद्दत थी। अब तक जो जज़्बात आंखों और खामोश इबारतों में छुपे थे, वो अल्फ़ाज़ बनकर सामने थे। कॉलेज के आखिरी छह महीने, दोनों के इश्क़ की चर्चा हर जुबां पर थी, मगर दोनों अपनी दुनिया में खोए रहते।
इन्हीं दिनों कॉलेज में नए टीचर आए,विवेक सर। तेज़, समझदार, और छात्रों के बेहद करीब। जब उन्हें आदित्य के गांव और हाल ही में हुई शादी का पता चला, तो उनकी बातों में एक अजीब-सी गहराई थी। धीरे-धीरे आदित्य और विवेक सर के बीच दोस्ती बढ़ने लगी। एक दिन आदित्य विवेक सर को अपने गांव ले गया—जहाँ नर्मदा किनारे की शांति, मिट्टी की खुशबू और घर की सादगी सब कुछ बदल देती थी।
घर पहुँचकर आदित्य ने परिवार से मिलवाया—माँ, पिता और पत्नी अन्वी। लेकिन अन्वी का चेहरा विवेक सर का नाम सुनते ही थोड़ा सा घबरा गया। बाद में आदित्य को पता चला कि विवेक सर और अन्वी पहले से एक-दूसरे को जानते थे—विवेक सर उसके स्कूल के टीचर रह चुके थे। अब अतीत और वर्तमान के रिश्ते एक-दूसरे से जुड़ गए थे।
धीरे-धीरे आदित्य को अहसास हुआ कि विवेक सर की गांव यात्रा का असली मकसद सिर्फ़ घूमना नहीं, बल्कि अन्वी से पुराने रिश्ते और उसके हालात को समझना था। एक दिन आदित्य ने दोनों को पुराने दोस्तों की तरह बातें करते देख लिया—उनकी मुस्कान, अपनापन और अतीत की गर्मजोशी साफ़ झलक रही थी।
अन्वी ने  सारी बात आदित्य को बता दी थी
शहर लौटकर आदित्य ने सारी सच्चाई आशिमा को बता दी—अपनी शादी, विवेक सर और अन्वी के पुराने रिश्ते, और दिल की उलझनें। अब फैसला आशिमा के हाथ में था। आदित्य ने अन्वी को तलाक़ दे दिया था । विवेक सर  को ये बात मालूम हो गई थी,शायद  अन्वी ने ही बताई होगी, विवेक सर खुश थे ऐसा मुझे लगा था, अन्वी के घर वालों ने मुझे कुछ न कहा शायद उनको विवेक सर और अन्वी के रिश्ते की जानकारी थी, अन्वी के घर वालों ने मेरे यहां आकर हम सबसे मुआफी मांगी थी  हम खामोश थे।  हम पास कहने को कुछ भी नहीं था,
आदित्य ने आशिमा से शादी कर ली, और अन्वी को तलाक़ देकर विवेक सर के हवाले कर दिया। यह फैसला आसान नहीं था—मगर हर किरदार ने अपनी तक़दीर चुन ली थी। रिश्तों की जटिलता, मोहब्बत की सच्चाई और इंसानियत की गहराई के साथ ज़िंदगी ने सबको अपनी-अपनी मंज़िल दे दी थी।

— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह सहज.

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।

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