इतिहास

गणेश शंकर विद्यार्थी : क़लम में वह शक्ति है जो तलवारों को भी कुंद कर सकती है

 26 अक्टूबर भारत की पत्रकारिता, समाज और स्वतंत्रता के इतिहास में एक उज्ज्वल तिथि है, क्योंकि इस दिन 1890 को प्रयागराज के अतरसुइया मोहल्ले में वह बालक जन्मा था जिसने आगे चलकर न केवल अंग्रेज़ी साम्राज्य की नींव हिला दी, बल्कि अपने आदर्शों और बलिदान से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नैतिक प्रकाशस्तंभ बन गया,गणेश शंकर विद्यार्थी। आज जब लोकतंत्र में मीडिया अक्सर अपनी भूमिका के प्रश्नों से जूझ रहा है, तब गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती हमें याद दिलाती है कि पत्रकारिता केवल खबरों का व्यापार नहीं बल्कि समाज की आत्मा का दर्पण है। विद्यार्थी जी ने ‘प्रताप’ पत्र को राजनीति से ऊपर उठाकर जनचेतना की क्रांति का औज़ार बनाया। उन्होंने न दमन से डरना सीखा, न सत्ता के सामने झुकना। उनकी कलम ने गलत को गलत और सही को सही कहने का दुस्साहस दिखाया। यही निर्भीकता उन्हें पाँच बार जेल तक ले गई, पर उनकी लेखनी का संकल्प कभी नहीं टूटा। 1913 में जब ‘प्रताप’ अस्तित्व में आया, तब वह केवल एक अख़बार नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत का घोष-पत्र बन गया। विद्यार्थी जी जानते थे कि कलम में वह शक्ति है जो तलवारों को भी कुंद कर सकती है। इसलिए उन्होंने किसानों, मजदूरों, और समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज को अंग्रेज़ी हुकूमत की बंदिशों के पार पहुंचाया। गांधीजी से लेकर भगत सिंह तक, हर युग का युवा उनके विचारों से प्रेरित हुआ क्योंकि वे शब्दों में आक्रोश नहीं, उद्देश्य देखना सिखाते थे। विद्यार्थी जी की पत्रकारिता राष्ट्रीयता पर आधारित थी, न कि किसी दल, संप्रदाय या वर्ग पर। यही कारण है कि वे गांधी की अहिंसा को भी पूजते थे और भगत सिंह के साहस को भी नमन करते थे। उन्होंने दिखाया कि देशभक्ति विचारों की सीमाओं में नहीं बँधी होती, उसका आधार सत्य और आत्मबल है। 25 मार्च 1931 को जब कानपुर में दंगे हुए तो विद्यार्थी जी ने न हिंदू देखा न मुसलमान, वे केवल इंसानियत को बचाने चले थे और शांति बहाल करते समय शहीद हो गए। गणेश शंकर विद्यार्थी का जाना भारत की पत्रकारिता का बलिदान दिवस बन गया। गांधीजी ने उनके निधन पर कहा था,काश, मुझे भी ऐसी मृत्यु प्राप्त होती। 

26 अक्टूबर की यह जयंती हमें केवल अतीत की याद नहीं दिलाती बल्कि वर्तमान को आत्मनिरीक्षण का अवसर देती है कि कहीं हम उस आदर्श से दूर तो नहीं हो गए, जहाँ पत्रकारिता तनख्वाह का पेशा नहीं बल्कि जनसेवा का व्रत थी। आज जब समाज सच की बजाय सनसनी का शिकार हो रहा है, तब विद्यार्थी जी की विरासत हमें आह्वान करती है कि कलम को पुनः चरित्र की लौ से जोड़ें। गणेश शंकर विद्यार्थी अपने समय के लिए नहीं, हर युग के लिए प्रासंगिक हैं क्योंकि वे बताते हैं कि सच्चे पत्रकार और सच्चे देशभक्त का धर्म एक ही है,अन्याय के विरुद्ध निडर रहना। उनका जीवन हमें यही सिखाता है कि सत्ता बदल सकती है, परिस्थितियाँ बदल सकती हैं, पर सत्य और त्याग की रोशनी कभी नहीं बुझती।

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह 

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।