कविता

माँ 

आज वही बात दोहराऊँगी ,
जो माँ ने मूझे समझाई थी !
पूछ लिया था , माँ से मैंने
जब तूम नहीं रहोगी माँ
मैं केसे जी पाऊँगी !
तुम्हारे बिना मैं मर जाऊँगी
माँ बोली थी ,देखो बेटी
तू मूझे भूल जाओगी ,
जब तूम को भी बेटी होगी !
उस के लाड़ दुलार मैं
तूम जब खोई होगी !
जब तू भी एक बेटी की
माँ बन जायेगी !
पर माँ की बात झूंटी निकली
जब जब देखती हूँ बेटी का चेहरा
हर बार उभर आता है !
बेटी के चेहरे पर माँ का चेहरा
और मूझे माँ याद आती है
बहुत याद आती है !
मीनाक्षी भालेराव

2 thoughts on “माँ 

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जो इंसान अपनी माँ को भूल जाता है , उसे मैं इंसान नहीं कहूँगा.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता !

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