उत्सव …
मैं अपने जीवन का उत्सव ,
किस रूप में मनाउ,
जब से तुम दूर गयी मेरे से ,
मेरी जिंदगी बेगानी सी लगती है,
मैं अब इस कदर तन्हा हो गयी ,
कि , ख़ुशी मिलने पर भी ,
ख़ुशी का इजहार न कर पाउ,
तुम्हारी वो प्यार अनोखी थी ,
जो प्यार हमे दिया करती थी ,
तेरे ही विरह में काट रही हैं ,
ये मेरी नाजुक सी जिंदगी ,
अब तो तुम मेरी भावनाओ को समझो ,
बहुत दूर रह ली हमसे ,
अब पास आ भी जाओ |
निवेदिता चतुर्वेदी
वाह वाह ! बहुत खूब !!
dhanybad jee
सुंदर!!
dhanybad