कविता

बड़ी होती लड़की

बड़ी होती लड़की
बिन्दास थी
उफान थी
तूफ़ान थी
घूरती निगाहों ने
बना दिया उसे
घबरा घबरा
कर हकलाते हुये
चलने वाली लड़की
माँ पिता जी की नसीहतें
उसके लिये कभी ख़त्म
ही नहीं हो पाई
तुम लड़की हो . . .
बस ये ही रटाती थी माँ
बड़ी होती लड़की
हरफनमौला थी
उड़ती तितली थी
फूलों की खुशबू थी
अश्लील तानों ने
बाँध दिये पंख उसके
छूने की अनाधिकृत
कोशिश मनचलों की
लील गये खुशबू उसकी
बड़ी होती लड़की
मासूम थी
बेखौफ थी
जीवंत थी
सारी सरहदें
उसी के लिये
हँसी को क़ैद कर
मासूमियत को
खो बैठी
बड़ी होती लड़की
पीढी दर पीढी
चली आ रही
रोक टोक ने छींटाकशी ने
बदल दी वो बड़ी होती लड़की
माय चॉइस का नारा देती
वो बड़ी होती बदलती लड़की

अंजलि “अंजुमन”

अंजलि शर्मा 'अंजुमन'

मिट्टी का तन मस्ती का मन क्षण भर जीवन मेरा परिचय इन पंक्तियाँ को ख़ुद में सार्थक करती राजस्थान के एक छोटे से शहर ब्यावर की निवासी है अंजलि शर्मा लेखन के क्षेत्र में बचपन से ही सक्रिय रही है व etv राजस्थान में उद्घोषक रह चुकी है 9 सितम्बर 1979 को जन्मी अंजलि शर्मा ने पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है व प्राणीशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय है और प्ले स्कूल का संचालन कर रही हैं.