विज्ञान

लोक लोकान्तर के परस्पर आकर्षण शक्ति से स्थिर होने विषयक वैज्ञानिक मत पर शंका और उसका महर्षि दयानन्द का समाधान

ओ३म्

 

 

वैज्ञानिकों का मानना व कहना है कि ब्रह्माण्ड के सभी लोक लोकान्तर परस्पर के आकर्षण व गति से अपने वर्तमान स्वरूप में गतिशील होकर विद्यमान हैं तथा इनका रचयिता, धारण व पालनकर्त्ता कोई नहीं है।

 

वैज्ञानिकों की इस मान्यता वा शंका का महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के दूसरे मण्डल के छठें अध्याय के सोलहवें सूक्त के दूसरे मन्त्र का भाष्य करते हुए समाधान कर बताया है कि ईश्वर ही इस ब्रह्माण्ड का रचयिता, धारण कत्र्ता व पालक है। वेद मन्त्र है-अवंशे द्यामस्तभायद्बृहन्तमा रोदसी अपृणदन्तरिक्षम्। धारयत्पृथिवीं पप्रथच्च सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार।।’  इस मन्त्र का भावार्थ करते वह कहते हैं कि कई लोग नास्तिकता को स्वीकार कर यदि ऐसा कहें कि ये लोक लोकान्तर परस्पर के आकर्षण से universeस्थिर हैं और इनका धारण करने वा रचने वाला कोई नहीं है तो उन के प्रति विद्वान्जन ऐसा समाधान देवें कि यदि सूर्यादि लोकों के आकर्षण से ही सब लोक स्थिति पाते हैं तो सृष्टि के अन्त में अर्थात् जहां कि सृष्टि के आगे कुछ नहीं है, वहां के लोकों का और उन लोकों के अन्य लोकों से आकर्षण के विना आकर्षण होना कैसे सम्भव है? (इसका उत्तर उन वैज्ञानिकों व नास्तिकों के पास नहीं है) अतः इस से सर्वव्यापक परमेश्वर की आकर्षण शक्ति से ही सूर्यादि लोक अपने रूप और अपनी क्रियाओं को धारण करते हैं। ईश्वर के इन उक्त कर्मों को देख जानकर सृष्टि के रचयिता, आकर्षण शक्ति के स्वामी धारणकर्त्ता ईश्वर की सभी मनुष्यों को धन्यवादों से प्रशंसा सर्वदा करनी चाहिये। 

 

 

हम समझते हैं कि महर्षि दयानन्द जी ने नास्तिक वैज्ञानिकों की आकर्षण शक्ति विषयक मान्यता पर उठने वाली शंका को प्रस्तुत कर जो समाधान दिया है, वह वरणीय एवं स्तुत्य है। सभी वैज्ञानिकों को उनके प्रश्न और समाधान पर विचार कर, अन्य समाधान न होने के कारण, इसे स्वीकार करना चाहिये। इसके लिए महर्षि दयानन्द को नमन है।

 

मनमोहन कुमार आर्य

 

2 thoughts on “लोक लोकान्तर के परस्पर आकर्षण शक्ति से स्थिर होने विषयक वैज्ञानिक मत पर शंका और उसका महर्षि दयानन्द का समाधान

  • मनमोहन भाई , छोटा सा लेख अच्छा लगा . नास्तक मानते हैं कि कोई रब नहीं है ,और आस्तक मानते हैं रब है जो इस दुनीआं का रचेता है . इस बारे में मैंने कभी भी जिंदगी में सरदर्दी नहीं ली है .मैं तो यह मान कर कि कोई तो होगा ही जिस ने यह दुनीआं पैदा की है , वोह हमारे कामों को देखता भी होगा ,इस लिए कोशिश की जाए कि अछे इंसान बन्ने कि कोशिश करें . इस से एक बात और भी निकलती है कि भले ही नास्तक सएंस्दान रब को न मानते हों लेकिन उन्होंने संसार को बहुत कुछ दिया है और दे रहे हैं . आज हम मोबाइल पे दुनीआं भर में एक दुसरे से संपर्क कर सकते हैं ,एरोप्लेन से अपने दूर बैठे भाई बहनों से मिल सकते हैं ,यह इन्तार्नैत ,कारें ,क्या क्या हम बात करें ,यह नास्तक सएंस्दानों की देन ही तो है . अगर वोह कहते हैं कि कोई रब नहीं है तो हम को क्या नुक्सान पौह्न्चता है ? इस की दुसरी साइड को देखें तो गिआत हो जाएगा कि जितना धर्मों ने खून बहाया है रब के नाम पर उतना किसी ने नहीं बहाया .आज आइसस अल्ला के नाम पर ही तो लोगों को मार रहे हैं और उन को यूरप की ओर धकेल रहे हैं .मुसलमान हिन्दू को नफरत और हिन्दू मुसलमान को नफरत करते हैं तो रब कहाँ गिया ? मेरा तो एक ही विचार है कि रब जो करता है ,उस को करने दो और जो इंसान है उस को रब को पिता मान कर उस से डरना चाहिए और अछे काम करने चाहियें .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। लेख पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। आपके विचारों से पूर्ण सहमत हूँ। मैं भी अपने लेख में वैज्ञानिक उपलब्धियों की चर्चा करता रहता हूँ और उनका धन्यवाद करता रहता हूँ। यहाँ विनम्रता पूर्वक यह कहना चाहता हूँ कि जिस ईश्वर ने हमें व सभी प्राणियों को जन्म दिया है तथा जिसने यह संसार बनाकर हमें हर प्रकार का सुख दिया है, हमें दिल से उसे याद कर उसका प्रतिदिन धन्यवाद करना चाहिए। दूसरा हम सबका कर्तव्य यह है कि जीवों पर दया करते हुवे किसी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए और पर्यावरण को स्वच्छ व शुद्ध रखना चाहिए। यह सभी आविष्कार निःसंदेह नास्तिक वैज्ञानिकों ने किये हैं परन्तु यह भी सच है कि यह उनके पुरुषार्थ का फल है। इसके साथ उनका शरीर, बुद्धि और बल भी ईश्वर या प्रकृति या दोनों की ही देन हैं। मुझे एक वक्ता की बात याद आ गई। उन्हों विवेचना कर सिद्ध किया था की यदि ईश्वर नहीं भी है तो भी उसे मानने में कोई हर्ज़ वा हानि नहीं है। परन्तु यदि वह है और हम नहीं मानते तो उसकी उपासना से मिलने वाले लाभों से हम वंचित हो जाएंगे। इसलिए सभी को ईश्वर को अवश्य मानना चाहिए व उसकी उपासना करनी चाहिए। महर्षि दयानंद जी के अनुसार ईश्वर को मानने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार पदार्थ प्राप्त होते हैं। जो यह बात कही जाती है की धर्म को मानने वालों ने खून बहाया है, मैं उसे इस रूप में लेता हूँ कि वह धर्म को जानते ही नहीं थे। उनका धर्म एक मिथ्या विश्वास था। इसलिए उन्होंने यह हत्याएं की। धर्म तो किसी को जीवन देता है लेता नहीं। मैं तो आपकी इस पंक्ति का अनुयायी हूँ कि “मेरा तो एक ही विचार है कि रब जो करता है, उस को करने दो और जो इंसान है उस को रब को पिता मान कर उस से डरना चाहिए और अछे काम करने चाहियें”. यह आपने वेदों की ही बात कही है। आपमें वेदों का सत्य ज्ञान भरा है, यह उसका प्रमाण है। हार्दिक धन्यवाद। आपसे इसी प्रकार से उत्साहवर्धन होता रहेगा, इसी आशा के साथ।

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