धरती आकाश का मिलन,
क्षितिज की और संध्या काल में निहारती नारी के मन में उठते भावो का ब्यान करती हुई यह कविता —–
और कभी जब,
मैं क्षितिज की ओर निहारती हूँ,
लगता है कितना मधुर ,
धरती आकाश का मिलन,
पलकें निहारती हैं जब ऐसा दिलकश नज़ारा,
आभास होता है, जैसे प्रियतम से प्रेम आलिंगन
संग पाकर प्रियतम का,
मन पाता है कितना सुख,
तन पता है कितना संतोष ,
शबनम सी शीतलता मिलती है–
भरता है तन में नया रंग, नया जोश,
उपहार मिलता है खुशबू भरे प्यार का
मन हो जाता है मदहोश ,
श्रावण की शीतल फुहार सा,
खिल उठता है मन कोमल,
मिलते हैं जीवन में जब,
ऐसे प्यार के अनमोल पल
— जय प्रकाश भाटिया
अच्छी अभिव्यक्ति
अच्छी अभिव्यक्ति