आदेश
रागिनी डॉक्टर बनकर बहुत खुश थी. उसी शहर में एक जाने-जाने-माने वकील युवक से उसका विवाह भी शानौ-शौकत से हो गया. हनीमून से वापिस आकर दो-चार दिन बाद वकील साहब कोर्ट चले गए, रागिनी अपने अस्पताल. दो दिन ऐसे ही निकल गए. तीसरे दिन बहूरानी को तैयार होकर कार में बैठने जा रही रागिनी से ससुर जी ने पूछा-
”आप सुबह-सुबह किधर को चल दीं?”
”नौकरी पर पापाजी.” रागिनी का उत्तर था.
”ठीक है बेटी, आज जाओ, शाम को इस्तीफ़ा देती हुई आना, कल से घर पर ही आपकी क्लिनिक तैयार मिलेगी.” पापाजी बोल रहे थे- ”हमारे परिवार की महिलाएं धन अर्जित करने के लिए घर से बाहर नहीं जातीं. घर पर गरीबों की निःशुल्क चिकित्सा करती रहना.” रागिनी ने लिए यह मानो एक आदेश था. शाम को इस्तीफ़ा देकर घर आई, पापाजी उसको घर के एक बड़े हॉल में ले गए. रागिनी सजा-सजाया क्लिनिक देखकर हैरान थी. पापाजी बोले, ”बेटी किसी चीज़ की कमी लग रही हो, तो अभी शिवराज को बोल देना, वह ले आएगा.”
तीन दिन बाद वकील साहब ने जानना चाहा, ”रागिनी, आजकल आप सुबह तैयार नहीं हो रही हो, तबियत तो ठीक है न!” और जल्दी के कारण उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना, एक और प्रश्न उछाला, ”यह सामने कंस्ट्रक्शन किसका चल्रहा है?”
रागिनी ने निःस्पृहता से उत्तर दिया- ”मेरी तबियत ठीक है. मैं आजकल नौकरी पर नहीं जा रही हूं.”
”पर क्यों?”
”पापाजी का आदेश है.”
”आपने मुझे बताया क्यों नहीं?”
”पापाजी का आदेश था, इसलिए बताना उचित नहीं समझा, और हां यह कंस्ट्रक्शन मेरे अस्पताल के लिए चल रहा है.”
वकील साहब ने अपनी अदालत में जाना ही ठीक समझा.
इस सुन्दर कथा के लिए धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कथा सुंदर लगी. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
बढिया लघुकथा बहिन जी !
प्रिय विजय भाई जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
लीला बहन , लघु कथा अच्छी लगी ,अगर धन सम्पति हो तो इस काम से अच्छा कोई काम हो ही नहीं सकता ,इस में लाभ ही लाभ है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपका आशीर्वाद इसी तरह बना रहे. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.