कौमी एकता
कौमी एकता
इंसानियत का फरमान
धर्म जाति वर्गवाद
अंतरद्वंद से हटकर
मानवीय प्रयास
धर्म गुनाह नही
अति धर्मवादिता
कहाँ तक है उचित
मानवता से बड़ा
धर्म कहाँ
मानवता संप्रभु है
संप्रभु धर्म नहीं
धर्म ग्रंथ के आधीन है
अज्ञानी धर्म के रक्षक
कब हुए है
अज्ञानी ज्वर की विभीषिका
मानवता के ऊपर
करता तांडव नृत्य
भगवा भावना प्रेम
देश भक्ति का परिचायक है
हरा रंग सृजन द्योतक
जीवन का आधार
धर्म आतंक नहीं
धर्म की कुत्सित विवेचना
धर्म का सृजन नही कर सकता
संकीर्णता
विकास का मार्ग
कदापि नहीं बन सकता
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
बढ़िया रचना !
राज किशोर जी , कौमी एकता पर लिखी यह पन्क्तिआन बहुत अछी लगी .गुदुआरे मंदर में जा कर भगवान् को याद करना और बात है लेकिन बाहर आ कर इंसान से सच्चा पियार करना और बात है .
आदरणीय भामरा जी सप्रेम नमस्ते – प्यार , प्रेम मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं ———– किसी कवि ने सत्य ही कहा है—— मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे—————- आपके स्नेह के लिए आभार