कविता

कौमी एकता

कौमी एकता
इंसानियत का फरमान
धर्म जाति वर्गवाद
अंतरद्वंद से हटकर
मानवीय प्रयास 
धर्म गुनाह नही
अति धर्मवादिता
कहाँ तक है उचित
मानवता से बड़ा
धर्म कहाँ
मानवता संप्रभु है
संप्रभु धर्म नहीं
धर्म ग्रंथ के आधीन है
अज्ञानी धर्म के रक्षक
कब हुए है
अज्ञानी ज्वर की विभीषिका
मानवता के ऊपर
करता तांडव नृत्य
भगवा भावना प्रेम
देश भक्ति का परिचायक है
हरा रंग सृजन द्योतक
जीवन का आधार
धर्म आतंक नहीं
धर्म की कुत्सित विवेचना
धर्म का  सृजन  नही  कर  सकता
संकीर्णता
विकास का मार्ग
कदापि नहीं बन सकता

राजकिशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

3 thoughts on “कौमी एकता

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया रचना !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राज किशोर जी , कौमी एकता पर लिखी यह पन्क्तिआन बहुत अछी लगी .गुदुआरे मंदर में जा कर भगवान् को याद करना और बात है लेकिन बाहर आ कर इंसान से सच्चा पियार करना और बात है .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय भामरा जी सप्रेम नमस्ते – प्यार , प्रेम मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं ———– किसी कवि ने सत्य ही कहा है—— मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे—————- आपके स्नेह के लिए आभार

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