कविता

कविता : वेदना

कुदरती पीड़ा
“प्रसव वेदना”
से स्त्री तो
एक बार में
मुक्त होकर
अपने चेहरे पर
उम्र भर
मुस्करान ला लेती है
पर पुरूष
उसकी जिम्मेदारियों का
वहन उम्र भर
करता है
जो
उसके चेहरे से
साफ साफ पढ़ा
जा सकता है।

कंचन आरजू

कंचन आरजू

कंचन आरजू़ एम.ए. (बी.एड) दिल्ली दूरदर्शन एंकर एवम् आकाशवाणी कम्पेयर इलाहाबाद