पीछे मुड़ कर कभी न देखो
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना,
उज्वल ‘कल’ है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संधर्ष आज तुमको करना है,
मेहनत में तुमको खपना है।
दिन और रात तुम्हारे अपने,
कठिन परिश्रम में तपना है।
फौलादी आशाऐं लेकर, तुम लक्ष्य प्राप्ति करते जाना,
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
इक-इक पल है बहुत कीमती,
गया समय वापस ना आता।
रहते समय न जागे तुम तो,
जीवन भर रोना रह जाता।
सत्यवचन सबको खलता है मुश्किल है सच को सुन पाना,
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
बीहड़ बीयावान डगर पर,
कदम-कदम पर शूल मिलेंगे।
इस छलिया माया नगरी में,
अपने ही प्रतिकूल मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना,
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
कैसे ये होते हैं अपने,
जो सपनों को तोड़ा करते हैं।
मुश्किल में हों आप अगर तो,
झटपट मुँह मोड़ा करते हैं।
एक ईश जो साथ तुम्हारे, उसके तुम हो कर रह जाना,
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
झंझावाती पवन प्रबल पर,
तुमको नहीं कहीं रुकना है।
बाधाऐं हावी हों सिर पर,
फिर भी नहीं तुम्हें झुकना है।
मन में दृढ़ विश्वास लिए, संकल्प सिद्ध करते जाना।
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
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(यह कविता मेरे काव्य-संकलन *मिटने वाली रात नहीं*
से ली गई है।) …आनन्द विश्वास