गलती का अहसास
नेकचंद जी एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे . परिवार में पत्नि और चार बेटियां थी । नेकचंद जी का सपना था अपनी बेटियों को ऊँची से ऊँची शिक्षा दिलाना जिससे वह समाज का भला और देश का नाम ऊंचा कर सकें।
नेकचंद जी की आय इतनी नहीं थी, ले देकर गुजारा चल जाता था । बेटियों को ऊँची शिक्षा दिलाने के लिए अधिक आय कि आवश्यकता थी, इसलिए नेकचंद जी ने अध्यापन के बाद घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की व्यवस्था कर ली । धीरे धीरे उनकी आय में वृद्धि होने लगी उन्होंने घर कि मरम्मत भी करवा ली ट्यूशन पढ़ने आये छात्रों के बैठने के लिए अलग कमरा बनवा लिया, सोफा टेबल अलमारी किताबें वगैरह भी रखवा दी।
मास्टर जी यदि देखते कि कोई छात्र होनहार है पर पैसों के अभाव के कारण पढ़ाई ठीक से नहीं कर पा रहा तो वह उस छात्र को बिना फीस लिए ट्यूशन पढ़ाते यहां तक कि यदि कोई छात्र अपने स्कूल कि फीस नहीं दे पाता तो वह उसकी फीस भी भर देते थे ।
एक दिन नेकचंद जी अपने घर के बरामदे में बैठे हुए थे । उन्होंने देखा कि उनके स्कूल का छात्र विवेक एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति को साथ लेकर उनके घर कि ओर आ रहा था । वह व्यक्ति मैले कुचेले वस्त्र पहने हुए था । विवेक स्कूल में रोज साफ़ सुथरे कपडे, नए नए जूते पहन कर आया करता था उसके स्कूल का बैग भी बहुत कीमती होता था ।
मास्टर जी ने उठकर उनका स्वागत किया ओर विवेक को साथ आये व्यक्ति के साथ अंदर आने को कहा । विवेक सिर झुकाये खड़ा था ओर साथ आये व्यक्ति का हाथ पकड़कर सकुचाते हुए धीरे धीरे उसके कान में कुछ बुदबुदा रहा था । वह अपने साथ आये व्यक्ति को अंदर आने से मना कर रहा था ।
मास्टर जी ने पूछा कि विवेक क्या बात है आप लोग अंदर क्यों नहीं आ रहे हो ? उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा मास्टर जी मैं विवेक का पिता हूँ । हम यहीं ठीक हैं मैं तो अपने बेटे की ट्यूशन के लिए आपसे बात करने आया हूँ । मेरे मैले कुचेले कपड़ो के कारण विवेक शर्म महसूस कर रहा है और कह रहा है की खड़े खड़े ही बात कर लो । मैं खेत में मजदूरी कर के गुजारा करता हूँ इसे खूब पढ़ा लिखा कर बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहता हूँ पर मेरे पास ट्यूशन के पूरे पैसे नहीं है । आपके मार्गदर्शन से मैं इसे प्रतियोगी परीक्षा में भेजकर अपना सपना पूरा करना चाहता हूँ ।
मास्टर जी ने उनका हाथ पकड़कर अंदर बिठाया । उन्होंने विवेक से पूछा विवेक तुम तो स्कूल में बहुत अच्छे कपडे जूते पहनते हो कीमती बस्ता लेकर स्कूल आते हो तुम्हारे पिता अगर चाहें तो स्वयम अच्छा खा पी सकते हैं अच्छे कपडे पहन सकते हैं और तुमसे भी खेत में मजदूरी करवा सकते हैं । यदि अभी तुम पढ़ना लिखना छोड़ कर मजदूरी करोगे तो पूरी जिंदगी मेहनत मजदूरी करनी पड़ेगी । उन्होंने विवेक के पिता से कहा कि इससे तो मजदूरी करवाइये पढ़ लिखकर यह क्या करेगा ? विवेक और उसके पिता ऐसा सुनकर अचंभित रह गए । विवेक ने हिम्मत करके मास्टर जी से पूछा मास्टर जी ऐसा क्यों ?
मास्टर जी ने जवाब दिया बेटा तुम्हें आज अपने पिता के फटे पुराने मैले कुचेले कपडे देखकर शर्म आ रही है । कभी तुमने सोचा है तुम आज जिस ढंग से कपडे पहन रहे हो बिना शारीरिक मेहनत किये पढ़ रहे हो किसके कारण ? तुम्हारे जैसे कई बच्चे पैसे के अभाव के कारण स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाते तुम्हारे पिता तुम्हें पढ़ाने के लिए कितना त्याग कर रहे हैं अपने पिता के दिल को देखो उसके कपड़ों को नहीं । अगर तुम्हें आज अपने पिता को साथ ले चलने में शर्म आ रही है तो कल जब तुम एक अफसर बन जाओगे तो अपने पिता को तो पहचानने से ही इनकार कर दोगे । अपने पिता के लिए सम्मान के बदले तुम उसके कपड़ों के कारण शर्म महसूस कर रहे हो । तुम्हारा नाम तो विवेक है पर तुमने अपने विवेक का उपयोग नहीं किया ।
सुनते ही विवेक तो शर्म से पानी पानी हो गया उसे अपनी गलती का अहसास हो गया । वह अपने पिता और मास्टर जी के सामने फूट फूट कर रो पड़ा । उसके पिता ने मास्टर जी को दिल से दुआए दी ।