ग़ज़ल : ये रिश्ते काँच से नाजुक
ये रिश्ते काँच से नाजुक जरा सी चोट पर टूटे
बिना रिश्तों के क्या जीवन, रिश्तों को संभालो तुम
जिसे देखो वही मुँह पर, क्यों मीठी बात करता है
सच्चा क्या खरा क्या है जरा इसको खँगालो तुम
हर कोई मिला करता बिछड़ने को ही जीवन में
मिले जीवन के सफ़र में जो, उन्हें अपना बना लो तुम
सियासत आज ऐसी है, नहीं सुनती है जनता की
अपनी बात कैसे भी चाहे उनको बता लो तुम
अगर महफूज़ रहकर के वतन महफूज रखना है
अपने नौनिहालों को बिगड़ने से बचा लो तुम
— मदन मोहन सक्सेना