गीतिका/ग़ज़ल

इंसान की हसरत पे कफ़न देख रहे हैं

अब हम भी ज़माने का सुख़न देख रहे हैं ।।
बिकता है सुखनवर ये पतन देख रहे हैं ।।

बदनाम न् हो जाये कहीं देश का प्रहरी ।
नफरत का सियासत में चलन देख रहे हैं ।।

वो मुल्क मिटाने की दुआ मांग रहा है ।
सीने में बहुत आग जलन देख रहे हैं।।

सब भूंख मिटाते हैं वहां ख्वाब दिखा कर ।
रोटी की तमन्ना का हवन देख रहे हैं ।।

वादों पे यकीं कर के गुजारे हैं कई साल ।
मुद्दत से गुनाहों का चमन देख रहे हैं ।।

लाशों में इज़ाफ़त तो कई बार हुई है ।
अम्नो सुकूँ का आज शमन देख रहे हैं ।।

इज्जत जो लुटी आज सड़क पे है तमाशा ।
चेहरों पे जलालत का शिकन देख रहें हैं ।।

पत्थर वो चलाते है सरे आम वतन पर ।
बदले हुए मंजर में चुभन देख रहे हैं ।।

भगवान से क्यों दूर हुए आज पुजारी ।।
दौलत के ठिकानों पे भजन देख रहे हैं ।।

रोटी ही नहीं पेट में जीना भी है मुश्किल ।
अब रोज तबस्सुम का दमन देख रहे हैं ।।

नम्बर मे वो अव्वल था वो कोटे में नहीं था ।
इंसान की हसरत पे कफ़न देख रहे हैं ।।

 नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com