खामोशी
खामोशी ने आकर दस्तक दी
मैंने दरवाज़ा खोला तो मुस्कुराई
मुझे आश्चर्य हुआ…
उन्हों ने मुझे पूछा;
ऐसा भी क्या हुआ कि मेरे आने से
तुम्हें आश्चर्य हो रहा है ?
मैंने कहा; तुम खामोशी हो, और
मुस्कुराती भी हो…. !
उसने कहा; क्या खामोशी को
मुस्कुराने का भी अधिकार नहीं?
मैं इसलिए मुस्कुराई कि –
आज मुझे यह महसूस हुआ कि –
तुम ही मेरे हो… बिलकुल मेरे जैसे !
खामोश !!
— पंकज त्रिवेदी