लघुकथा

नेक काम

गांव में एक बार फिर हड़कंप मचा हुआ था । मुखिया के बेटे ने आज फिर एक शिकार किया था ‘ मुनिया ‘ का । दबी जुबान से चर्चा शुरू थी मुनिया से हुए बलात्कार की लेकिन किसकी मजाल थी कि मुखिया या उसके लड़के के खिलाफ कोई शिकायत करता ?
कुछ दिन बाद कल्लू हरिजन के यहां आयी उसके दूर के एक दूसरेरिश्तेदार की लड़की ‘ रूबी ‘ शौच के लिए जाते हुए मुखिया के बेटे और उसके साथियों को दिखी । गांव के बाहर शौच से वापस आते हुए रूबी का घात लगाकर बैठे मुखिया के बेटे और उसके तीन साथियों ने शिकार कर लिया । चारों ने जमकर अपनी मर्दानगी दिखाई उस अबला पर लेकिन यह क्या ? इतने अत्याचार के बावजूद वह हंस रही थी । उन दरिंदों के उम्मीद के विपरीत उसका हंसना उन्हें अखर गया । एक लड़के ने पूछ ही लिया इसका कारण । जवाब सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई । जवाब था ” मैं कल्लू हरिजन की कोई रिश्तेदार विश्तेदार नहीं मैं सोनागाछी से आई एक वेश्या हूं । मुझे एड्स है । अब मेरा अंत नजदीक है सोचा जाते जाते कोई नेक काम करती जाऊं । और इसलिए तुमने मेरा नहीं मैंने तुम लोगों का शिकार करके इन गांववालों को तुम्हारे अत्याचारों से मुक्ति दिला दी है । अब तुम सब अपनी जिंदगी के दिन गिनने शुरू कर दो । ”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

2 thoughts on “नेक काम

  • राजकुमार कांदु

    सही कहा आपने आदरणीय भाईसाहब ! सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छा किया ,इन दरिंदों को भी याद रहेगा और आख़री सांस लेने तक याद रहेगा .

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