कवितापद्य साहित्य

पायदान…  

सीढ़ी की पहली पायदान हूँ मैं
जिसपर चढ़कर
समय ने छलाँग मारी
और चढ़ गया आसमान पर
मैं ठिठक कर तब से खड़ी
काल चक्र को बदलते देख रही हूँ,
कोई जिरह करना नहीं चाहती
न कोई बात कहना चाहती हूँ
न हक़ की न ईमान की
न तब की न अब की।
शायद यही प्रारब्ध है मेरा
मैं पायदान
सीढ़ी की पहली पायदान।
– जेन्नी शबनम (8. 3. 2018)
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