मन भी सिक्का हो जाता है !!
मौन मेरा
आज कुछ बातों को
सिक्के की तरह
उछाल रहा है
गगन की ओर
चित्त और पट
अब मन की मुट्ठी में है
किस बात को
कैसे कब और कहाँ
इस्तेमाल करना है।
…
जब बातें
कड़क और स्प्ष्ट हों
तो मन भी सिक्का हो जाता है
क्या लेना है और क्या छोड़ना
निर्णय किसी हथेली पर
चाहकर भी नहीं छोड़ता मन !!!