कविता

मन भी सिक्का हो जाता है !!

मौन मेरा
आज कुछ बातों को
सिक्के की तरह
उछाल रहा है
गगन की ओर
चित्त और पट
अब मन की मुट्ठी में है
किस बात को
कैसे कब और कहाँ
इस्तेमाल करना है।

जब बातें
कड़क और स्प्ष्ट हों
तो मन भी सिक्का हो जाता है
क्या लेना है और क्या छोड़ना
निर्णय किसी हथेली पर
चाहकर भी नहीं छोड़ता मन !!!

सीमा सिंघल 'सदा'

जन्म स्थान :* रीवा (मध्यप्रदेश) *शिक्षा :* एम.ए. (राजनीति शास्त्र) *लेखन : *आकाशवाणी रीवा से प्रसारण तो कभी पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित होते हुए मेरी कवितायेँ आप तक पहुँचती रहीं..सन 2009 से ब्लॉग जगत में ‘सदा’ के नाम से सक्रिय । *काव्य संग्रह : अर्पिता साझा काव्य संकलन, अनुगूंज, शब्दों के अरण्य में, हमारा शहर, बालार्क . *मेरी कलम : सन्नाटा बोलता है जब शब्द जन्म लेते हैं कुछ शब्द उतरते हैं उंगलियों का सहारा लेकर कागज़ की कश्ती में नन्हें कदमों से 'सदा' के लिए ... ब्लॉग : http://sadalikhna.blogspot.in/ ई-मेल : [email protected]