ग़ज़ल
रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद
रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |
जीस्त में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद
मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |
हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ
जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |
रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन
अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |
साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’ गयी
नहीं’ अब तक टली’ वो बलवा’ बला तेरे बाद |
इश्क में मस्त थे’ हम जिंदगी’ में साथ सदा
अब मुहब्बत से’ भी’ दिलगीर हुआ तेरे बाद |
बेखुदी में था’ सदा तेरे’ मुहब्बत-मय में
साकिया से भी’ मे’रे ध्यान हटा तेरे बाद |
दिलगीर –दुखी , बेखुदी – बेहोश, बेखबर
साकिया – शराब पिलानेवाली
कालीपद ‘प्रसाद’