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आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
हर एक सुदामा , गरीब बेचारा, |
फिरता देखो मारा मारा , |
कहीं नहीं कोई उसका सहारा |
आओ उसको गले लगाओ, |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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एक द्रोपदी कई दुशासन , |
रो रो कर हो रही है व्याकुल , |
सब चीर हरण को कितने आतुर, |
आकर उसकी लाज बचाओ , |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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गली गली में कंस विचरते, |
भक्तो का संहार वो करते, |
नहीं किसी हैं यह डरते, |
इन भक्तों के प्राण बचालो, |
इनके जीवन में सुख लाओ |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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राधा जैसा प्यार नहीं है, |
गोपियों का सत्कार नहीं है, |
जीने का आधार नहीं है, |
प्यार भी है व्यापार सरीखा, |
दिल से दिल को रास नहीं है, |
आओ प्रेम की ‘रासलीला’ दिखलाओ , |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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कितने अर्जुन तरस रहें है, |
गीता का उपदेश सुना दो, |
जैसे बने थे पार्थ सारथी , |
हम को भवसागर पार करा दो, |
युग बदलेगा , हम बदलेगें, |
आओ ज्ञान की ज्योति जलाओ , |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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प्रभु तुम से ही है आस हमारी |
तुम से है अरदास हमारी, |
प्रभु तुम आशा की किरण बनोगे, |
जन जन का उद्धार करोगे, |
आकर सुदर्शन चक्र चलाओ , |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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गौ रक्षा का धर्म निभाकर |
सच्चे मन से ध्यान लगा कर, |
बन कर सच्चे गौशाला सेवक |
अपना कर्तव्य निभाएंगें हम, |
आकर नव जागृति का दीप जलाओ |
आ जाओ कान्हा, अब तो आ जाओ, |
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–जय प्रकाश भाटिया |
जन्माष्टमी २०१४. |
बहुत अच्छी कविता, भाटिया जी।