दिलों की दूरियाँ
“जल्दी आ- जल्दी आ”
दूर कर लोगो के दिलों के फासले
दिन अब अच्छे आयेंगे
इसमे कोई दो राय नहीं –
दिलों के फासले, मिट जायेंगें
दूरियाँ कम न होंगी ट्रेन की रफ्तार बढ़ा के
दूरियाँ कम न होंगी इक दूजे का खून बहा के
अगर मिट जाये रिश्तों मेँ नफ़रतों की आग
खत्म हो जाएंगे धर्म ,जात-पात के फसाद
हल हो जाएगें ज़मीन जायदाद के भी मसले
कम हो जायेंगे अमीर-गरीब मे फासले
दूर होगी भूखमरी बेकारी,और बेहाली
हर तरफ होगी हरियाली और खुशहाली
हम सब प्रगति की राह पर होंगें अग्रसर
आतंकवादियों की कोशिशें होगीं बेअसर
ईश्वर ने बनाया हम सब को एक समान
फिर क्यों जात-पात, काले-गोरे से पहचान
सब को फिर वापिस, जाना है उसके पास–
एक दिन, बिन धन दौलत बिन सामान
फिर क्यों नहीं होता सबका बराबर सम्मान
क्यों अमीरों-गरीबों के लिए अलग प्रावधान
सब के लिए खुले हों उच्च चिकित्सा के अस्पताल
क्यों अमीर को मिले सब, गरीब ना हो कोई उपचार?
गरीब करे हर दिन अपने खुदा को फरियाद
अमीर पाये सब-कुछ कर नोटो की बरसात
ईश्वर ने ऐसा तो नही रचा था संसार
जब इंसान है तो कर इंसान से प्यार
कर दुनियाँ मे दोस्ती और अमन का प्रचार
यही है हमारे सभी धार्मिक-ग्रन्थों का सार.
— अरविन्द कुमार भाटिया