गीत/नवगीत

गीत – माँझी

ओ मांझी अपने जीवन की, गिरी हुई पतवार सम्भालो।
दीख रहा है दूर किनारा,
किन्तु झूमते तुम मस्ती में।
       आ जाये तूफान तीब्र यदि,
       पड़े रहोगे तुम कश्ती में।
       डूब न जाये नाँव तुम्हारी,
        तेज़ समय का तार सम्भालो।
नहीं तुम्हें चिन्ता है कोई,
       किधर नाव बढती जाती है।
       निश्चित नहीं राह कोई है,
       हिल्कोरे ले मस्ताती है।
       करो शीघ्र ही पथ का निर्णय,
      उन्नति पथ का द्वार सम्भालो।
लहरों से व्यापार कर रहे ,
      एक छोड़ते एक पकडते।
      इसी भांति तुम कृत्रिमता में,
      चले जा रहे नित्य जकडते।
      प्रेम करो अब मानवता से,
      निज भ्राता का प्यार सम्भालो।
आज यहां कण कण स्वार्थी,
      नहीं किसी का कोई अपना।
      अपनें सुख में सभी लिप्त हैं,
       बना जा रहा ये जग सपना।
       स्वार्थी दुनिया से लड़ने को,
       पर स्वार्थी तलवार सम्भालो।
मानवता लडखडा रही है,
       ओ नवयुवक सम्भल जाओ अब।
        उस कृत्रिम कश्ती को छोड़ो,
       इसको पार लगा जाओ अब।
      अपनी शक्ति स्वयं पहचानो,
      जन्म भूमि का भार सम्भालो।
शशी तिवारी

शशी तिवारी

अध्यापिका लखनऊ