कविता

कविता – जगतजननी

हे माँ तेरी मोहनी छवि आँखों में बस जाये
सुधबुध बिसरा कर मनवा तेरे ही गुण गाये

कैसी लगन लगाई मैया दिल तुझको ही बुलाये
मैया-मैया रटते रटते सुबहो-शाम बीत जाये

कैसे ध्यान लगाऊँ तुझमें तन-मन शिथिल हो जाये
हँसी उड़ायेंगे दुनिया वाले पगली कह कर बुलाये

तंत्र-मंत्र का ज्ञान नहीं है सुमिरन में रैन बितायें
नैवेद्य बिकाऊ हुए श्रद्धा से सिर नतमस्तक हो जाये

सुमिरन तेरा करते करते तुझमें लीन हो जाये
बस इतनी सी भक्ति देना माँ मन मयूर बन जाये।

दीवानगी के आलम में कुंजिकास्तोत्र गुणगुनायें
सहस्त्र नाम का जाप करूँ तो मन भँवर बन जाये।

भ्रामरी रुप में धरती पर आकर बेरा पार लगाना
हे मैया सब बिसरा दे मुझको पर तू ना हमें बिसराना।

— आरती राय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]