वृद्धाश्रम
जीवन के इस मोड़ में, यादें ही अब शेष
बेटा बेटी छोड़ के, चले गए परदेश
चले गए परदेश, जरा भी याद न आई
वृद्धाश्रम में बैठ, आँख माँ की भर आई
चले चक्षु चलचित्र, मनस होता उद्दीपन
भूली बिसरी याद, यही माता का जीवन
छाती में रख पत्र को, वृद्धाश्रम में मात
थाती बस इतनी बची, बहे नयन दिन रात
बहे नयन दिन रात, याद पुत्रों को करती
ताके सूनी राह, आह पल-पल वह भरती
कह अनंत कविराय, स्वयं को वह बहलाती
परिजन को कर याद, हूकती माँ की छाती
अनंत पुरोहित ‘अनंत’