हास्य व्यंग्य

तेल लगाने की कला

तेल लगाना एक ललित कला है I यदि आलोचकों ने इसे ललित कला में शामिल नहीं किया है तो भी यह ललित कला है I इस आभासी तेल में बहुत फिसलन होती है I इस तेल में बड़े- बड़े लोग खड़े–खड़े फिसलते देखे गए हैं I ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के तेल में पूरियां तलनेवाले अधिकारी भी इस चिकनाई में चारों खाने चित्त हो जाते हैं I यह दैवीय गुणों से युक्त सर्वहितकारी, सर्वबाधाहारी और अचूक तेल है I कलियुग में इससे अमोघ असरकारी दूसरा कोई तेल नहीं है I यह तेल दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों प्रकार के दुखों का शमन करनेवाला है I जिसने भी इस तरल पदार्थ का मनोयोगपूर्वक भक्ति भाव से इस्तेमाल किया उसकी जीवन नैया पार लग गई I तैलीय विधा में पारंगत होना कोई सरल कार्य नहीं है, इसके लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है I कठोर तप, अहर्निश सेवा और निरंतर अभ्यास के बाद ही कोई व्यक्ति मुकम्मल तेल कलाकार बनता है I एकनिष्ठ साधना, कठोर तप और ‘चापलूस मंत्र’ का अहर्निश जाप करने के बाद ही इस कला में प्रवीणता प्राप्त की जा सकती है I तेल कलाकारों को लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, गधों को बाप कहना पड़ता है, मूर्खों को बृहस्पति घोषित करना पड़ता है और ‘कमीना पुरुष’ को ‘महापुरुष’ बोलना पड़ता है I तेल लगाना कोई आसान काम नही है I यह तलवार की धार पर चलने के समान है, जरा संतुलन बिगड़ा और काम तमाम – ‘चढ़े तो चाखे प्रेम रस, गिरे तो चकनाचूर’ I इस कला में कम लोग ही सफलता की सीढी चढ़ पाते हैं I यह खाला का घर नहीं है कि मुंह उठाकर चले आए और तेल लगाने लगे I
आज़ाद होने के बाद तैलीय पंडितों की बहुत बड़ी संख्या सरकारी दफ्तरों में विराजमान हो गई और अपनी तैलीय विद्या के बल पर सत्ता का शीर्षासन करने लगी I देशज लोग इसे चमचागिरी कहें अथवा चापलूसी- कोई फर्क नहीं पड़ता I इस महान कला परंपरा को चरणदासी संप्रदाय कहें या तैलीय संप्रदाय – कुछ भी नाम दे दें’ लेकिन यह विधा है बहुत कमाल की I इस विधा ने भारतीय लोकतंत्र की लाज रख ली है वरना सरकारी दफ्तरों में काम करना – कराना कितना मुश्किल हो जाता I जिसने मालिश पुराण का पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव से पाठ किया उसकी आठों ऊँगलियाँ घी में होती हैं I तैलीय विधा में जिसने दक्षता प्राप्त कर ली उसका दुख-दारिद्र्य दूर हो जाता है, उसके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, सफलता के सभी दरवाजे खुल जाते हैं और वह परम धाम को प्राप्त करता है I चापलूसी मंत्र में अमोघ शक्ति होती है, यह निष्फल नहीं जाता I इस मंत्र का जाप कर अनेक लोग सीईओ, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक बन गए I जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा I एक ही जीवन मिला है, उसे संवार लो I ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा ? अगर अपनी मेधा और योग्यता से न संवरती हो तो चापलूसी का तेल और झूठ का क्रीम लगाओ I दुनिया तो सफलता देखती है, उसके पीछे किस ब्रांड का तेल, किस ब्रांड का क्रीम लगा है, यह कोई नहीं देखता I युद्ध और प्रेम में ही नहीं, जिन्दगी में भी सब कुछ जायज है I इतिहास में सफल लोगों की कहानी लिखी जाती है I साधन पवित्र हो या अपवित्र, मूल उद्देश्य सफलता प्राप्त करना है I यह चापलूसी से मिले या मुद्रा देवी की कृपा से I कलयुग केवल तेल आधारा I कलयुग में आगे बढ़ने का सस्ता, सुंदर और टिकाऊ तरीका चापलूसी मंत्र का अहर्निश जाप है I यदि आपने इस एक मंत्र को सिद्ध कर लिया तो किसी और मंत्र की आवश्यकता नहीं I इस एक मंत्र के सामने अन्य सभी मंत्र दो कौड़ी के हैं I कलिकाल का यह एकमात्र मंत्र आपके भाग्य का सिंहद्वार खोल सकता है -एकहि साधे सब सधे I यदि कोई चापलूसी कला में पारंगत नहीं है और निर्विघ्न सफलता की सीढ़ी पर चढ़ना चाहता है तो शास्त्रों में उसका भी विधान – समाधान वर्णित है I तैलीय गुण से रहित पुरुष पुंगव यदि नियमित रूप से मुद्रा देवी की उपासना- आराधना करें एवं प्रति दिन मुद्रा चालीसा का पाठ करते हुए यथाशक्ति समयानुसार उचित पात्र को रिश्वत रूप में मुद्रा दान करें तो वे इहलोक व परलोक में सफलता के गुड़ व रसीले मीठे फल खा सकते हैं I कुछ लोग इसे स्वार्थवाद कह सकते हैं लेकिन गोस्वामी तुलसीदास जी तो पहले ही कह चुके हैं – ‘सुर नर मुनि की यही सब रीति, स्वारथ लागी करहि सब प्रीति’ I
जिस प्रकार सच्चे भक्त भगवान को प्रिय होते हैं उसी प्रकार सच्चे चमचे नेताओं और अधिकारियों को प्रिय होते हैं I तेल कलाकार की कुछ न्यूनतम पात्रता निर्धारित है जिसके बिना कोई भी व्यक्ति उम्दा कोटि का तेल कलाकार नहीं बन सकता I तेल कलाकार की पहली योग्यता होती है कि उसे अपने आराध्य देव के खान-पान, पसंद–नापसंद, योग्यता–अयोग्यता आदि के संबंध में पूरी जानकारी हो I चरणदासी पुरुष पुंगव की दूसरी योग्यता है कि अपने आराध्य बॉस को प्रसन्न करने के लिए उसे मनोविज्ञान और कपाल विद्या का भी थोड़ा ज्ञान होना चाहिए I बॉस के सोचने से पहले ही उसे बॉस की भलाई- बुराई के बारे में सोचना पड़ेगा तभी वह सुयोग्य तेल कलाकार साबित होगा I यदि एक बार आपने अपने आराध्य बॉस को प्रसन्न कर लिया तो फिर और कुछ करने की आवश्यकता नही है I आजकल सरकारी दफ्तरों में तेल कलाकारों की मांग बहुत बढ़ गई है I भारत के सरकारी दफ्तरों में तैलीय विधा में दक्ष कर्मचारी सुखी और प्रसन्न रहते हैं I वे घर से ही अपनी उँगलियों में मक्खन लगाकर आते हैं और सुबह- सुबह अपने आराध्य देव (बॉस) को चटा देते हैं I इसके बाद क्या मजाल कि कोई छोटा अधिकारी उनसे काम करा ले I तेल लगाना एक प्राचीन कला है जिसका स्वर्णिम इतिहास और गौरवशाली अतीत रहा है I गरीबनवाज, जहाँपनाह, रायबहादुर, सरदार बहादुर, खान बहादुर, सितारे हिंद आदि शब्द खुशामद विधा और स्वामी भक्ति की उदात्त परंपरा के साक्षी हैं I इतिहास गवाह है कि अनेक हिन्दुस्तानियों ने अपनी इस अनमोल कला के बल पर मुगलों और अंग्रेजों को किस प्रकार चमत्कृत कर कैसी- कैसी उपाधियाँ झटक ली थीं I तेल कलाकार तीन प्रकार के होते हैं- उत्तम, मध्यम और अधम I उत्तम कोटि के तेल कलाकार इतनी बुद्धिमत्ता से अपने आराध्य को मक्खन लगाकर प्रसन्न कर देते हैं कि किसी को पता ही नहीं चलता और उनका लक्ष्य सिद्ध हो जाता है I मध्यम कोटि के तेल कलाकार छिप- छिपकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं I उनके साथी कहते हैं – ‘जरा सामने तो आओ छलिए’ लेकिन वे सामने नहीं आते I अधम कोटि के तेल कलाजीवी घोषित रूप से अपनी कलाबाजी दिखाते हैं- ‘खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों’ स्टाइल में I वे कहते हैं- ‘चाहे कोई मुझे चमचा कहे, कहने दो जी कहता रहे’ I चम्मच का अविष्कार किसने किया यह तो अज्ञात है लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है कि जिसने भी इस बहुउपयोगी कलियुगी यंत्र की खोज की होगी वह दूरदर्शी, वर्तमानजीवी और उच्च कोटि का तेल विद्या विशारद रहा होगा I कलियुग में इस सर्वजनसुलभ यंत्र से तत्काल लाभ प्राप्त होता है I अतः हे मनुष्य ! यदि तुम अपना और अपनी संततियों, साला- सालियों, चाचा- चाचियों, भतीजा- भतीजियों का कल्याण चाहते हो, यदि तुम अपना इहलोक एवं परलोक सुधारने के अभिलाषी हो, यदि तुम अपना तथा अपनों का भविष्य संवारना और परायों का बिगाड़ना चाहते हो, यदि तुम बिना मेहनत किये फोकट में सफलता के लड्डू खाना चाहते हो तो स्नानादि के उपरांत प्रतिदिन मनोयोगपूर्वक पूर्ण निष्ठा, भक्ति भाव व समर्पण के साथ शुद्ध अंतःकरण व विशुद्ध चित्त से प्रपंचरहित होकर खुशामद पुराण का पाठ करो, चापलूसी के तेल में घर के दीपक जलाओ और उसी दैवीय गुणयुक्त तेल में पूरियां तलो, तेल का डिब्बा हमेशा अपने साथ रखो और जरुरत व अवसरानुसार अपनी इस प्राचीन विधा का इस्तेमाल करो, तुम्हारा सदा कल्याण होगा I

इति सकलकलिकलुषविध्वंसने सर्वफल प्रदानाय तेल महात्मः प्रथम सोपानः समाप्तः II

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]