गीतिका/ग़ज़ल

नज्म

दिल की हालत क्या है, कैसे बताएं उलझन बड़ी है,
बताई भी नहीं जाती, छिपाई भी नहीं जाती.
दिल तो आईना है, खुद ही सब दिखा देता है,
ये वो शै है अलम की जिसको, छुपम-छुपाई भी नहीं आती.
ग़म के मारों से क्यों पूछते हो, तुम्हें ग़म क्या है,
ग़मगीनों का आलम है यह, कि उन्हें रुलाई भी नहीं आती.
कभी खुद से भी पूछ लिया करो, अपने दिल की अलमस्ती,
महज औरों की मस्ती से, संजीदगी नहीं आती.
है ज़र्रे-ज़र्रे में नूर जब उसका, फिर अपना क्या पराया क्या,
समझ यह बात आ जाए ‘गर तो, उलझन पास नहीं आती.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244