आजादी की कीमत
स्वाति जैसे ही तैयार हो कर घर से बाहर निकली, उसकी दादी ने उसे टोका- “स्वाति बेटा, इतनी कम उम्र में यूं सज संवर कर इस वक्त अकेली कहां जा रही हो! पता है ना तुम्हारी उम्र अभी पढने लिखने की है! और इस तरह के कपड़े भी भले घर की बेटियों के लिए पहनना ठीक नहीं है! ”
स्वाति आज अपनी सहेली रिया के बर्थडे पार्टी में शामिल होने के लिए जा रही थी! काफी देर से एक एक ड्रैस को पहन पहन कर खुद को शीशे में निहार कर उसे यह जीन्स टॉप पसंद आया था! उसने खुद को तैयार करने के लिए घंटो मेकअप किट लेकर आईने में खुद को निहारी थी तब जाकर उसे संतुष्टी लाईक मैकअप करने में सफलता मिल पाई थी! और घर से निकलते ही इस बुढिया ने टोक दिया!
स्वाति एक आजाद ख्यालों की लड़की थी! उसके स्कूल में जितनी सारी लड़कियां पढने आती थी सभी पूरी तरह स्वतंत्र रहती थी! कही आने जाने में किसी को कोई टोका टोकी नही! पर स्वाति के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं था! वह घर से निकली नहीं की सबसे पहले उसकी बूढी दादी ही टांग अड़ा देती! इस से पहले भी कई बार उसकी दादी ने ऐन वक्त पर उचित अनुचित का पाठ पढाया था!
स्वाति की मां किचेन में कोई काम कर रही थी! उसने मां के पास जा कर गुस्से से कहा -” मां ये रोज की किच-किच मुझे कतई पसंद नहीं! पता नही कौन से जन्मों के पाप के बदले मुझे ऐसी दादी और ऐसा परिवार मिला है, जहां हर बात में टोका-टोकी, चिक-चिक, झिक-झिक सहनी परती है! पता नही वो बुढिया जिंदा क्यों है, मर क्यों नहीं जाती ? मेरी सभी सहेलियां अपने अपने पैरेंट्स के साथ अकेली रहती है! सबके दादी दादा गांव में रहते है! उन लोंगों के घर में कितनी शांति है! जहां मन हो वहां आसानी से जा आ सकते है! कोई रोकटोक नहीं! कोई पूछ ताछ नहीं! जब मन हो आओ, जब मन हो जाओ! परंतु यहां तो आप को और पापा को कहीं बाहर जाना हो तो पापा खुद दादा दादी से पूछ कर जाते है! उन्होंने अगर मना कर दिया तो आप लोग कहीं नहीं जाते! मैं ऐसे घर में हरगिज नहीं रह सकती जहां इतनी सारी बंदिशे हो! या तो आप लोग दादा दादी को गांव में रहने को राजी कर लो या मुझे हॉस्टल में रहने की इजाजत दे दिजिए! ”
मा रंजना देवी समझदार महिला थी! वह जानती थी कि उसकी सास ने उसकी बेटी को अच्छी बात ही समझाई है! वह यह भी जानती है कि बेटी नए ख्यालात कि है और सास पुराने! दौनो की सोच में बहुत अंतर है! बेटी की शिक्षा जिस माहौल में हो रही है उसमें संस्कार की बेहद कमी है!पर करे भी तो क्या करे! वह पहले भी हजारों दफा बेटी को समझा चुकी है! परंतु अब शहर का व समाज का रिवाज ही बहुत तेजी से बदलता जा रहा है! आज कल के बच्चे ज्यादा टोका टोकी पसंद नहीं करते! वे बड़ों की बातों का सम्मान नहीं करते! मारपीट का जमाना तो है नही! युवा बच्चे को पीटना भी गलत ही होगा! रंजना देवी ने आहिस्ते शब्दों में कहा -” बेटी दादी मां का कहना कतई गलत नहीं है! तुम अभी महज ग्यारहवीं में ही हो! तुम छात्र जीवन जी रही हो, ऐसे में ये भड़कीले ड्रेस व चेहरे पर इतनी ज्यादा मैकअप तुम्हारे लिए ठीक नहीं! बर्थडे पार्टी में जाना है तो जाओ पर अच्छे कपड़े पहन कर जाओ, और समय से घर आ जाना! ”
” मम्मी तुम भी ना कभी हमें समझोगी ना हमारे बदलते युग को समझना चाहती! आखिर क्या कमी है इस कपड़े में!घर से बाहर निकल कर देखो इतनी सारी लड़कियां जीन्स पहनती है! उसे तो उसके घर वाले रोकते-टोकते नहीं! उनकी जब मर्जी तब आती जाती है, कहीं कोई बंदिशे नहीं! परंतु ना जाने क्यों सारी बंदिशे मेरे लिए ही है! मैं आज आखिरी बार कह देती हूं आज शाम में पापा जब ऑफिस से घर आएंगे तो मेरे हॉस्टल में रहने की बात कर के उन्हें राजी कर लेना! मुझे आप लोगों के साथ रह कर घुटन सी महसूस होती है! मैं अाप लोगो से अलग रहना चाहती हूं, आजाद रहना चाहती हूं, जहां मुझे किसी प्रकार की कोई रोक-टोक ना हो! ”
इतना कह कर स्वाति बाहर निकल गई!
स्वाति की दादी ने भी मां-बेटी की सारी बातचीत सुनी थी क्योंकि वो बगल के कमरे में ही थी! वह जानती थी कि उसकी बहू संस्कारी है, वह परिवार के साथ रहने का महत्व भी समझती है, परंतु अपनी बेटी को सही तरह से समझा नही पाती! बचपन से अत्यधिक लाड़-प्यार ने स्वाति को बिगार दिया है! परिवार में मिलजुल कर रहना उसे बोझ लगने लगा है! दादी मन ही मन सोच रही थी कि कैसे स्वाति को समझाया जाए!
उन्होंने स्वाति को आवाज लगाया वो कमरे में आई तो दादी ने कहा -” बेटी सुनो !”
स्वाति ने मन ही मन सोचा ना जाने अब क्या कहना बाकि रह गया इस बुढिया को! पक्का अब यह मेरी सेंडिल पर कमेंट करेगी कि इस उँची हील वाली सेंडल को मत पहनो! पर मैं तो उनकी एक ना सुनूंगी!
दादी ने कहा -” बेटी अब तुम बाजार जा ही रही हो तो मेरा एक काम करती हुई आना! ये कुछ रूपये रख लो! बाजार से एक किलो अंगूर खरीद कर लेती आना!”
स्वाति को यकीन ही नही हुआ कि उसकी दादी कोई काम बोलेगी! इस से पहले आज तक ऐसा नहीं हुआ! वह खुशी से बोली – ” दादी रूपये है मेरे पास, मैं लेती आउंगी! ”
दादी ने कहा -” अच्छा ठीक है पर सुनो, अंगूर बेचने वाले से रेट पूछ कर लेना! आज कल अंगूर बहुत महंगे है! ज्यादा रूपये खर्च करने की जरूरत नहीं अगर महंगे होगें तो दुकानदार से टूटे हुए अंगूर ले लेना, गुच्छा से टूटा हुआ सस्ता मिल जाएगा! ”
” ओके !” कहते हुए स्वाति मन ही मन भुनभुनाती हुई बोली -उंह बुढिया को अंगूर खाने का भी मन है और महंगाई भी देखती है!
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स्वाति जब बर्थ डे पार्टी से आई तब तक रात के दस बज गए थे और उसकी दादी खा पी कर सो गई थी!
अगले दिन सो के उठ कर वह अंगूर का थैला लिए दादी के पास गई और खुश होकर बोली – ” ये लो दादी अंगूर, मैने एक किलो अंगूर ला दिए है! ”
दादी ने पूछा -” ज्यादा महंगे तो नहीं ले ली! ”
स्वाति -” अरे नही दादी, आपने कहा था गुच्छे से टूटे हुए अंगूर सस्ते देते है! मैने वही लिए! घर में ही तो खाएंगे ना, गुच्छे वाले महंगे अंगूर ले कर क्या करते कौन सा मेहमानों को देने थे? परंतु दादी ये भी आश्चर्य कि बात है गुच्छे वाले अंगूर के भाव एक सौ बीस रूपये किलो थे, परंतु टूटे हुए अंगूर चालीस रूपये ही! मैने खा कर देखा दौनो का स्वाद वगैरह सब एक ही था फिर दाम में इतने अंतर क्यों दादी?
दादी ने कहा – ” बेटी क्या तुम्हें अब भी समझ में नहीं आया! सुनो मैं समझाती हूं! गुच्छे वाले अंगूर को संपूर्ण एक परिवार समझो, और टूटे हुए अंगूर को परिवार से अलग थलग! तुमने देखा कि गुच्छे में रहने पर अंगूर की कीमत बढ गई, वही अंगूर जब गुच्छे से अलग हुए तो स्वाद वगैरह सब एक समान रहने के बावजूद उसकी कीमत घट गई! क्योंकि परिवार के साथ जुड़ कर रहने में ही इंसान की कीमत बढती है, हां ये अलग बात है कि एक साथ रहने में आजादी थोड़ी कम मिलती है, पर सुविधाए, मान सम्मान सब कुछ मिलता है! बेशक तुम हॉस्टल जा कर पूरी तरह आजाद हो जाओगी, परंतु जरा ध्यान से सोचो आसमान की उँचाई पर उड़ती पतंग की डोर जमीन पर किसी इंसान के हाथ में होती है! और हर समय वह पतंग चाहता है कि कब उसकी डोर टूटे और वह आजाद हो कर पूरे आसमान में उड़े!
अब जरा कल्पना करो जब किसी कि पतंग की डोर टूट जाती है तो बेशक कुछ देर के लिए वह पतंग हवा में अत्यधिक उँचाई तक जाता है, परंतु उसी तेजी के साथ वह वापस जमीन पर गिरता है! और जब पतंग धागे से अलग होकर जमीन पर गिरता है, उसे लूटने वाले बच्चे कि कमी नही होती!
लड़कियों की जिंदगी भी किसी पतंग से कम नहीं होती! जब तक वह परिवार रूपी डोर से बंधी है, वह आसमान की बुलंदीयों को छू सकती है! जैसै ही वह आजाद होने के ख्याल से परिवार रूपी डोर से अलग होती है, वैसे ही उसे लूटने वाले चारों तरफ से घेरने को आतुर होते है! और अंत में उस आजाद हुई पतंग को आजादी की कीमत खुद को लुट कर ही चुकानी होती है!
अतः हमेशा परिवार से जुड़ कर रहना ही ठीक है! ”
स्वाति के दिमाग में दादी की बात मानो पहली बार हिट कर गई हो! आज से पहले इतनी गहराई से कभी वह दादी की बातों को समझ ही नहीं पाई थी! उसे परिवार का महत्व समझ में आ चुका था, और अब उसे दादी से कोई गिला-शिकवा भी नही था! उसकी दादी इतनी भी बुरी नही जितनी वह आज तक उसे समझ रही थी!
वह वहां से उठी तो उसके चेहरे के भावो में बहुत परिवर्तन था! वह पूरी श्रद्धा से दादी को प्रणाम कर वहां से निकली!
सुबह करीब दस बजे स्वाति के पापा ऑफिस चले गए तो मां ने स्वाति को बुला कर कहा -” बेटी, रात मैने तुम्हारे हॉस्टल में रहने के लिए तुम्हारे पापा से बात कर ली है! बड़ी मुश्किल से मैने उन्हें राजी कर लिया है! तुम जिस भी हॉस्टल में रहना चाहती हो वहां जाकर देख लो, तुम जब चाहो जा कर हॉस्टल में रह सकती हो! ”
स्वाति कि आँखों में आंसू आ गए वह रूंधे गले से बोली -” मां मुझे माफ करना! अब मैं हॉस्टल में नहीं रह सकती! क्योंकि मुझे पता चल चुका है कि इंसान परिवार से अलग हो कर आजाद भले ही हो जाए पर उसकी कीमत घट जाती है! मेरे अंदर शायद संस्कारों की कमी थी! एक छोटे से वाकये ने मुझे समझाया कि अलग होने पर लोगों की क्या दुर्गति होती है! मैं अब यही रहूंगी आप सबों के साथ, और जैसे आप लोग चाहे वैसे कपड़े पहनने को बोलिये, मैं आप लोगों की भावनाओं का हमेशा ख्याल रखूंगी! ”
रंजना देवी को अपने बेटी के स्वभावों में अविस्मरणीय परिवर्तन देख आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े!
दूसरे कमरे में बैठी दादी अपनी पोती स्वाति के मुंह से यह सब सुन मन ही मन विधाता को धन्यवाद देने लगी!
समाप्त!
– ओम प्रकाश ‘आनंद’