उदासी की नई रेखा!
घिर आती जीवन में पीड़ा
मन में मंद चिंता का घेरा
पथ विचार उलझ जाता
सूझ न पड़ती कोई राह
फिर! छा जाती….!
उदासी की नई रेखा!
सूनी आँखों के डूबे स्वप्न
तैर रही हो घुटन हवा में
चिपक जाती वाणी कंठ में
चमक छूटती चेहरे की
फिर! छा जाती….!
उदासी की नई रेखा!
हर बार उठा है मनुज
घुट-घुटकर पीड़ा पीकर
हर बार उदासी से फूटा
जीवन का नव अंकुर
फिर! छा जाती….!
उदासी की नई रेखा!
ठन जाता संघर्ष-समर फिर!
उदासी अमर जीवन में आती
फिर! निश्चय ही प्रगति लाती
प्रकृति प्राण खोते फिर पाती
फिर! छा जाती….!
उदासी की नई रेखा!
— ज्ञानीचोर