कविता

कागज की कश्तियां

चलो आज फिर बच्चें बन
लौट चले बचपन की ओर
साथ ले बचपन के
लंगोटिया यारों को
कागज की कश्तियां बना
बारिश के पानी में चलाते हैं
देखो घर के बाहर
सड़कों पे भरा है पानी
चलो अपनी कश्तियां
वही चलाते हैं
पानी से उठने वाले
छीटों से हुए गंदे
कपड़ों की परवाह न कर
बचपन का आनंद उठाते हैं
अंदर के बच्चें को
आज फिर जगाते हैं
चलो बारिश के पानी में
कागज की कश्तियां चलाते हैं।

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020