गीतिका
नये युग मिले मंजिल सबको, पग-पग चलने से
आती बाधा छँट जायेंगी, रह रह बढ़ने से।
मेरे दाता जीना सुख ले, काम कर- ठर थकते
सब आपदा गुजरे सुगम सी,तिल-तिल टलने से।
भाग्य साथ वक्त लगा हाथ , जबतक दम में दम,
पाया जो थमा जाना जोड़, पर-फर लगने से।
ये जो पाया कल वो होगा,मन भरा सोच डट
हल करनी होगी सब आपति, डर कर टलने से।
सर हाथ धर रहे छोटों के , यहीं बात सच है,
रिश्ते न बिगड़ लेकर दूरी,बढे उम्र पल – पल।
— रेखा मोहन