कुछ देर सही
कुछ देर सही…….पर
अफ़सोस होता है।
जब सब करने के बाद भी,
खुद पे इलजाम होता है।
कुछ देर सही…….पर
अफ़सोस होता है।
आँख सूखी भी रहे ,
पर दिल जार – जार रोता है।
कुछ देर सही…….पर
अफ़सोस होता है।
शब्द दिल -दर्द चीर जाता है,
और कहने वाले को…कहाँ
थोड़ा -सा भी अहसास होता है।
कुछ देर सही…….पर
अफ़सोस होता है।
हमारा कसूर तो बतायें ।
बात बिगडे नही,
खामोशी की सजा ,
हमारे ही हिस्से आयें ।
हम सह….क्यों रहे है ।
यह जबाब मिल भी न पायेें |
सवालों की वो झड़ी,
जवाब में डर कर रब भी सामने ना आयें।
अपना समझा पर,
किसी को अपना बना नहीं पायें।
रिश्तों के नाम बहुत थे।
पर हकीकत जान ना पायें।
करें कोई फिर भला …क्या???
जब कोई अपना ही पहचान न पायें ।
जिंदगी निकल गई हर हालात से,
जिंदगी जीने की हर कोशिश पर,
जब- जब जीवन बेकार होता है।
कुछ देर सही पर अफसोस होता है
बहुत अफसोस होता है |
— प्रीति शर्मा “असीम”