लघुकथा – सुकून
व्हाट्सएप पर बेटे का मैसेज था,”पापा इस महीने रूपये नहीं भेज पा रहा हूँ। किसी तरह मैनेज कर लेंगे।”
‘तुम चिंता मत करो दीपक। मन लगाकर काम करो।” पिता ने जवाब टाइप किया।
पापा मैं बहुत जल्द आ रहा हूँ। अमेरिका में रहकर मैं बिल्कुल अकेलापन महसूस कर रहा हूँ। आपके त्याग और परिश्रम से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और नौकरी भी लग गई अच्छी कंपनी में। लेकिन…अब मुझे आपके साथ रहना चाहिए।”
“क्या नौकरी छोड़ दी तुमने?”पिता ने चिंता जताई।
“जी पापा! मैंने यहाँ की नौकरी छोड़ दी है लेकिन अपने ही देश में एक बड़ी कंपनी में ऑनलाइन ज्वाइन कर ली है।”
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“अब हमलोग साथ ही रहेंगे।” पिता की आँखों में सुकून चमक उठा।
— निर्मल कुमार डे