गज़ल
आगाज़ तो हो जाए अंजाम तक ना पहुंचे
जब तक मेरी कहानी तेरे नाम तक ना पहुंचे
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तेरे आने से उजाला फैला है हरसू लेकिन
ये सुबह धीरे-धीरे कहीं शाम तक ना पहुंचे
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कभी उनसे सिलसिले थे दिन-रात गुफ्तगू के
अब सदियां गुज़रें पर इक पैगाम तक ना पहुंचे
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मयकशी के दरिया में जो डूबा फिर ना उबरा
तेरी दीवानगी भी कहीं जाम तक ना पहुंचे
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इतनी भी तरक्की किसी काम की नहीं है
जहां यार-दोस्तों का सलाम तक ना पहुंचे
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।