कविता

लोकतंत्र

हम और हमारा लोकतंत्र दोनों महान हैं
क्योंकि लोक और तंत्र हमारी शान है।
तभी तो हम लोकतंत्र का खुला मजाक उड़ाते हैं,
लोक रहे या भाड़ में जाय मेरी बला से
हम तो लोक और तंत्र का खुलकर मजाक उड़ाते हैं।
कहने की जरूरत नहीं है
कि हम कितने निराले हैं?
अपने लोक की चिंता करते हैं
शायद इसीलिए तंत्र की धज्जियां उड़ाते हैं।
यही तो हमारी विशेषता है यारों
हम तो वो हैं जो खुद के पैरों में कुल्हाड़ी मारते हैं
जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद भी करते हैं
अपने हाथों अपना आशियां जलाते हैं
लोकतंत्र की महानता के गुण गाते हैं
लोकतंत्र के हम दुश्मन बनते
और उसी के गीत भी गाते हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921