हे धरा कृपा करो
धधक धधक रही धरा अब
झुलस रहे सभी प्राणी जीव
देखा नहीं ऐसा मंजर कभी
हे धरा ! हम पर कृपा करो
क्यों तुम रूठी हो वसुधा
सूख रही है प्रकृति यहाँ
चारों ओर गर्मी का कहर
धरा बंजर है बन रही
कांटे ही कांटे उग रहे
छाया का नाम कहां
धूप अंगारे बरसा रही
हे वसुधा ! कृपा करो
ममतामयी कहलाती हो तुम
छोड़कर क्रोध की अग्नि
ठंडक प्रदान करो हमें
हे धरती माँ! माफ करो
आगे से नहीं करेंगे छेडछाड
करो हम सबका तुम भला
करेंगे हमेशा ख्याल तेरा
सुरक्षित नहीं हैं हम यहां
काले बादल छा रहे
जन-जन को डरा रहे
तुम पर ही हमारी डोर
हो यहां सदा सुखद भोर
हे वसुधा ! तूं है तो हैं हम
क्षमा करो तुम हमारी भूल
हमारी दयनीय दशा को देख
कृपा करो हे वसुन्धरा ! तुम
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन