कविता

पीड़ा

ऐ पीड़ा तू कौन है?
जाने कहां से आती है
मेरे ह्रदय को वेदना से भर जाती है
तेरी तपिश से
आंखें सजल हो जाती है
तेरी हूक उठती है जब
मुख मलिन हो जाती है तब
तेरी कसक आठो पहर
इस दिल को रूलाती है।
मेरा साथ न छोड़ें कभी
जैसे कोई हमजोली
तेरे संताप न छूटा कोई
कोई निर्धन हो या धनी
जीवन की इस रस्साकसी में
जीतती है हर बार पीड़ा ही।
पीड़ा की है ऐसी तासीर
जिसके पाश से न छूटे कोई
मानव अस्तित्व को करती है
पूर्ण और परिपक्व पीड़ा ही।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P