बशर हूं मैं अेक अैसा – वजूद जिसका मिटा सकता नही कोई
दीवार बे शक हूं मैं इक पुरानी – गिरा सकता इसको नही कोई
शक है अगर आप को – तो पूछ लो फिज़ाओं से बहारों से
मुशकिल बुहत होगा उन के लिये- असलीयत मेरी बता सकता नही कोई
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साफ दिल हूं मैं और हूं खुदा के बुहत ही क़रीब
सितम जितने भी चाहे कर ले – रुला सकता नही मुझे कोई
कोशिश जितनी भी चाहे कर ले – रोक सकता नही मुझे कोई
खवाहिशों को भी मेरे दिल की – मिटा सकता नही कोई
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मार बेशक ढाला हो – इस ज़माने ने अपने तरीके से
मगर खाक में मुझ को – मिला सकता नही कोई
ज़िनदगी मेरी बुहत ही – अज़ीज़ है दुनिया में –मदन–
यादों को मेरे दिल की – भुला सकता नही कोई