कविता

आओ! गुस्सा त्यागें

कुछ खट्टी, कुछ मीठी,
यादों के साथ ,
मैं तेरे दिल में बस जाऊंगी,
जब मुझे तू याद करेगा ,तो
मैं चाहकर भी !
तेरे पास वापस न आ पाऊंगी, सब छोड़ चली जाऊंगी,
कल किसने देखा है?
आओ!  गुस्सा त्यागें, हम प्रेम सौहार्द की बातें करें।
जिंदगी!  चार दिन की है,
जाने कौन! कितने दिन का मेहमान,
आओ ! अपनी खुशियां ,अपनों के साथ बांट लें,
अगर,मन में कोई गांठ हो,तो उसे खोल दो!
एक –दूजे के साथी हैं ,
हम  दूसरे का सहारा बने,
आओ ! गुस्सा त्यागें, हम प्रेम– सौहार्द की बात करें।
— चेतना चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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