खट्टा-मीठा : हमसे मत पूछिए
एक समय था जब समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में एक स्तम्भ अवश्य आता था– “हमसे पूछिए “।इनमें विशेषज्ञ लोग पाठकों के प्रश्नों के उत्तर दिया करते थे। अब तो ये स्तम्भ समाप्त हो गये हैं, क्योंकि लोग सीधे गूगल बाबा से पूछ लेते हैं।
पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका काम पूछताछ किये बिना नहीं चलता, जैसे– पुलिस, सीबीआई औरईडी। ये ऐसे लोगों से पूछताछ करते हैं जिनके बारे में सन्देह होता है कि वे अपराधों में शामिल हैं याउनके बारे में कुछ जानते हैं।
अब ईडी को ही लीजिए। वह ऐसे लोगों के पीछे पड़ जाती है जिन्होंने करोड़ों–अरबों रुपये कमाये होतेहैं। स्पष्ट है कि इतना धन कोई ईमानदारी से कमाया हुआ सफ़ेद धन तो हो नहीं सकता, प्रायः कालाधन ही होता है। ईडी इसीलिए पूछताछ करता है कि इतना धन तुम्हारे पास कहाँ से और कैसे आया।
काले धन के कुछ मालिक इतने ढीठ होते हैं कि ऐसी पूछताछ के पसन्द नहीं करते। वे यह मान लेते हैंकि सारा पैसा चाहें काला हो या सफ़ेद उनके बाप या माँ का है और किसी को उस पर पूछताछ करनेका अधिकार नहीं है। क़ानून की ऐसी–तैसी।
वे कहते हैं– “हमसे मत पूछिए कि इतना धन हमारे कहाँ से आया, कैसे आया और क्यों आया। हमसेमत पूछिए कि इसके लिए हमने कैसी–कैसी तिकड़म भिड़ाई हैं और कौन–कौन से क़ानून तोड़े हैं।हमसे यह भी मत पूछिए कि हमने यह पैसा कहाँ रखा है, कहाँ लगाया है और कहाँ छिपाया है।”
वे धमकाते हैं कि यदि आप हमले पूछताछ करेंगे तो हम धरना देंगे और सड़कों पर बवाल करेंगे, क्योंकि देश को लूटकर खाना हमारा जन्मजात अधिकार है।
पर ईडी और सीबीआई भी एक ही दुष्ट हैं। वे पूछताछ किये बिना मानते ही नहीं और ज़बरदस्तीबुलाकर घंटों पूछताछ करते हैं जिससे करोड़ों–अरबों के मालिकों की इज़्ज़त मिट्टी हो जाती है।इसलिए मैं सीबीआई और ईडी दोनों से पहले ही कहे देता हूँ कि जिससे पूछना हो पूछ लेना, पर कृपया मुझसे मत पूछना।
— बीजू ब्रजवासी
श्रावण शु. ३, सं. २०७९ वि. (३१ जुलाई, २०२२)