मुक्तक/दोहा मुक्तक डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन 26/08/2022 जब कभी थे काम के, कद्र अपनी थी बहुत, गर्दिशों का दौर आया, हासिए पर हैं बहुत। कर दिया हमको तन्हां, बुढ़ापे के इस दौर में, जंग लगा बेबस हुए, ठुकराए गए हम बहुत। — डॉ अ कीर्तिवर्द्धन