धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

इक्ष्वाकु वंशीय गुरु नानक देव: भगवान राम के वंशज

गुरु नानक देव  खत्री वंश में अवतरित हुए थे।      खत्री दरअसल सूर्यवंशी क्षत्रिय ही हैं। खत्री शब्द की उत्पत्ति क्षत्री से हुयी है। *गुरु अंगद जी जब गुरुमुखी अक्षरों का निर्माण कर रहे थे तो उन्होंने क्ष की जगह ख का प्रयोग किया।*  माता हिंगलाज खत्रियों की कुल देवी हैं।

गुरु गोविन्द सिंह ने बिचित्र नाटक के दूसरे अध्याय से लेकर पाँचवे अध्याय तक में बेदी वंश (जिसमें गुरु नानक जी उत्पन्न हुए) की उत्पत्ति की *भगवान श्री राम से संबंधित* होने की ऐतिहासिक कथा का वर्णन किया गया है ।

अयोध्यापति भगवान राम के उत्तराधिकारी लव ने लाहौर नगर की स्थापना की।
इसी वंश में *कालराय नामक राजा हुए* जिनके पुत्र का नाम सोढीराय हुए  सोढीराय वंश प्रवर्तक राजा थे  जिनके वंशज सोढी कहलाये।
लाहौर के पास कसूर क्षेत्र से लगा नगर था जो कुश के वंशजों के अधिकार क्षेत्र में आता था।
कालान्तर में  लव और कुश के वंशों में झगड़ा शुरु हो गया जिसमें लव के वंशज पराजित हुए और लाहौर छोड़ कर  सनौढ जो  मथुरा भरतपुर क्षेत्र था , चले गये ।
अनेक वर्षों तक सनौढ प्रदेश पर सोढी वंश ने  राज किया पर वे लोग भूल नहीं पाए थे कि कसूरवालों से  पराजित होकर  लाहौर से दूर हैं।
उसी पराजय का बदला लेने के लिए *सोढीवंशियों* ने लाहौर पर फिर एक बार  हमला किया।
लववंशियों और कुशवंशियों  का भयंकर युद्ध हुआ।
लव वंशी विजयी हुए।
कुशवंशी अपने योद्धाओं को लेकर  काशीजी को चले गए।
वहाँ जाकर उन्होंने वेदों का अध्ययन करना शुरु कर दिया और वे वेदपाठी हो गए।
वेदपाठी होने के कारण वे वेदी के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
*गुरु गोविन्द सिंह जी ने बिचित्र नाटक में इस घटना का सप्रसंग उल्लेख  किया है*  पंजाब में सोढियों को अपने भाईयों की इस विद्वत्ता का पता चला तो उन्होंने साग्रह सन्देशवाहक भेज कर  उन्हें वापिस पंजाब बुलाया।
*यह संदेश मिलने पर वेदी वंश के लोग प्रसन्नता पूर्वक पंजाब में आ गये,*
लव वंशियों में भी वेदपाठन करके वेदी हुए, वेदियों की कई पीढ़ियों ने  लाहौर में राज किया।
*कालान्तर  में इसी  बेदी वंश में खत्री परिवार में “गुरु नानक देव” जी का जन्म हुआ।*

*गुरु नानक देव* अपने को लव का वंशज मानते थे और 1501 में अयोध्या आकर  श्रीराम जन्मभूमि के  दर्शन किये।
वह अयोध्या स्थित ब्रह्मकुंड पर ठहरे थे जहाँ पर आज  गुरुद्वारा है।
यहीं पास में एक कुआं है जहाँ एक बेल के पेड़ के नीचे उन्होंने संत समाज की बैठक बुलाई थी।
उनका अयोध्या विवरण आज भी ब्रह्मकुंड के गुरूद्वारे पर अंकित है।
*गुरु नानक ही नही गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह ने भी यहाँ कर राम लला के दर्शन किये थे।*

श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण फैसले पर इस  विवरण की अहम् भूमिका रही है।

मैं एक बात स्पष्ट कर दूँ कि जो कुछ लिखा गया है वह तथ्य है जो *दशमेश गुरु के हवाले से लिखा गया है* जिसकी सत्यता पर कोई संदेह नही कर सकता है।
जो सनातन को हिंदू और सिख में बाँट कर देखते हैं उनसे मुझे कुछ नही कहना है पर गुरु नानक हमारे पुरखे हैं, हमारे गुरु हैं हमारे धर्म रक्षक हैं यही सनातन सत्य है।

(आज के संदर्भ में जबकि कुछ भ्रमित सिख अपने को सनातन से अलग समझने की दिशा में जा रहे हैं, यह लेख गुरु नानक देव की जयंती पर  पुनर्प्रस्तुति हेतु आपके समक्ष है, सिख समाज को दशमेश गुरु गोबिंद सिंह के चंडी उक्ति बिलास के बारम्बार पाठ करने की महती आवश्यकता है, *क्योंकि हम सब एक ही हैं*)

सियाराम मय सब जग जानी ।
करहु प्रणाम जोरि जुग पानी ।।

*।।एक ओंकार एक सतनाम ।।*